शिक्षक दिवस विशेष: राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. दिलीप कुमार झा ने शैक्षणिक जगत में एक कालजयी अमिट छाप छोड़ी

राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ0 दिलीप कुमार झा अपने सेवाकाल में समर्पण एवं निष्ठा भाव से शिक्षण कार्य करते हुए शैक्षणिक जगत में एक कालजयी अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ0 दिलीप कुमार झा डिस्ट्रिक्ट सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस, दुमका (प्लस टू जिला स्कूल, दुमका) में अंग्रेजी शिक्षक के रूप में पदस्थापित हैं। डॉ0 दिलीप कुमार झा एक सक्रिय एसोसिएट एनसीसी पदाधिकारी भी हैं। शिक्षण कार्य में समर्पित होकर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने एवं दिव्यांग छात्रों एवं आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को तन मन धन से सहायता कर उनके जीवन को सफल बनाने में योगदान करने पर डॉ0 दिलीप कुमार झा को 2012 में उस समय के राष्ट्रपति प्रणय मुखर्जी के करकमलों द्वारा राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ0 दिलीप कुमार झा गोड्डा जिला के बसंतराय प्रखंड के महेशपुर गाँव के रहने वाले हैं। डॉ0 दिलीप अभी भी उसी उत्साह से समाजसेवा एवं राष्ट्र सेवा के लिए कर्मशील हैं जैसा राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने से पहले थे। डॉ0 दिलीप कुमार झा को शिक्षा के क्षेत्र एवं समाजसेवा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर कई अवार्ड मिल चुका है। डॉ0 दिलीप को झारखंड विधानसभा के वर्षगांठ पर भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करकमलों से सम्मानित किया जा चुका है।डॉ0 दिलीप को सामाजिक कार्यों में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए पीएचडी के मानद उपाधि से नवाजा जा चूका है।डॉ0 दिलीप ने शिक्षक दिवस पर राष्ट्र के सभी शिक्षकों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि मानव संसाधन के बुद्धि एवं विवेक को हीरे की तरह तराश कर उसको बेशकीमती बनाने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।डॉ0 दिलीप के अनुसार कर्मठ शिक्षक राष्ट्र एवं समाज के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक अपने सेवाकाल से सेवानिवृत्त तो हो जाते हैं लेकिन कभी भी अपने शिक्षक धर्म एवं कर्तव्य से सेवानिवृत्त नही होते हैं।डॉ0 दिलीप कहते हैं कि युवा पीढ़ियों के भविष्य निर्माण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक एक मोमबत्ती के तरह है जो स्वयं जलकर अपने शिष्यों के जीवन को प्रकाशित करते हुए उनके जीवन को खुशहाल बनाता है।डॉ0 दिलीप ने कहा है कि शिक्षकों को सिर्फ अध्ययन एवं अध्यापन कार्य लिए ही स्वंतत्र रहने देना चाहिए। उनको गैर शैक्षणिक कार्यो से मुक्त कर देना चाहिए ताकि शिक्षक स्वतंत्र रूप से उत्कृष्ट अध्यापन कार्य करते हुए युवाओ को राष्ट्र निर्माण के लिए उत्कृष्ट एवं सुयोग्य बना सके।