दीवाली का त्योहार: परंपराओं के साथ पर्यावरण का भी रखें ख्याल
जैसे-जैसे दिवाली पास आ रही है, उसकी तैयारी तेज होती जा रही है। पर, उसके साथ ही एक चिंता भी गहराती जा रही है कि इस बार भी प्रदूषण का स्तर कितना बढ़ जाएगा ? प्रदूषण के इस फिक्र को अचानक से फुर्र तो नहीं किया जा सकता है, पर उसे कम करने की ओर समझदारी भरे कदम जरूर बढ़ाए जा सकते हैं। इसके लिए आपको दिवाली मनाने के तरीके और मिजाज दोनों में बदलाव करने होंगे। और इसकी शुरुआत आपको अपने घर से करनी होगी:-
दीया से जगमग करें घर- हम शॉर्टकट में इतना ज्यादा विश्वास करते हैं। कि दीये के भी विकल्प खोज चुके हैं। मोमबत्ती, दीये जैसी दिखनी वाली लाइटें अब हमारी दिवाली को रोशन करने लग गई हैं। पर, क्या कभी सोचा है कि हम सरसों के तेल के दीये क्यों जलाते थे? छोटे से ये दीये सिर्फ रोशनी नहीं देते हैं बल्कि प्रदूषण, कीट पंतगों को भी भगाते हैं।
नैचुरोपैथ डॉ. राजेश मिश्र की मानें तो सरसों के तेल में मैग्नीशियम, ट्राइग्लिसराइड और एलिल आइसोथियोसाइनेट होता है। एलिल कीट- पंतगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। दीपक के पास आपने सफेद कण जमा देखे होंगे, जो तेल के मैग्नीशियम के कारण मुमकिन हो पाता है। विषैले तत्व भारी होकर जमीन पर आ गिरते हैं, हवा हल्की हो जाती है और हम आसानी से सांस ले पाते हैं। आप मिट्टी के दीयों के साथ ही गाय के गोबर से बने दीयों को भी प्रयोग कर सकती हैं, जिनको जलाने के बाद आप आप पेड़ों में खाद के तौर पर भी प्रयोग कर सकती हैं।
प्राकृतिक चीजों का करें प्रयोग– बिना सजवाट दिवाली की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल सा है। पर, इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने के लिए इस बार अपनी सजावट में प्रकृति के रंगों को ज्यादा से ज्यादा भरने की कोशिश कीजिए। प्लास्टिक के आर्टिफिशियल फूलों और बंदनवार की जगह घर के दरवाजे को ताजे फूलों की लड़ियों और फूल-पत्तियों के बंदनवार से सजाइए। आप घर की सजावट के लिए गुलाब का प्रयोग कर सकती हैं। यह मन को शांत करने के साथ ही तनाव भी दूर करेगा। चमेली सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करती है। इस फूल की खुशबू पूरे माहौल को तनाव मुक्त बना देती है । रंगोली को भी केमिकल वाले रंगों से मुक्त रखने की कोशिश कीजिए। इसके लिए फूलों से लेकर अनाज तक की रंगोली बनाई जा सकती है।
सुंगध को कीजिए शामिल- सुगंध दिवाली के मौके पर हमारे घर के साथ ही साथ हमारे व्यक्तित्व पर भी असर डालेगी। मनोचिकित्सक डॉ. बताती हैं कि खुशबू हमारे दिमाग के उस हिस्से पर असर डालती है, जो याददाश्त और मूड के लिए जिम्मेदार होता है। यह हमारी ऊर्जा में इजाफा कर सकती है। साथ ही साथ सुगंध हमारे तनाव में भी खासी कमी लाती है। यह हमारे डर के भावों को भी खत्म करने में मददगार साबित हो सकती है। कहते हैं कि सुगंध के सही प्रयोग से एकाग्रता में भी इजाफा किया जा सकता है। इतना ही नहीं, इससे आप स्नायु तंत्र से जुड़ी और अवसाद सरीखी समस्याओं से भी निजात पा पाती हैं। तो यकीनन इस दिवाली खुशबू से अपना और अपने घर नाता जोड़ ही लीजिए। घर को खुशबूदार रखने के लिए डिफ्यूजर की मदद लें।
पकवानों में दें देसी तड़का- त्योहार मतलब खाने खिलाने का दौर। जहां आपके पास ढेरों विकल्प मौजूद हैं। पर, यहां पर परंपरा या यूं कहें देसी तड़का ही फायदे का सौदा होगा। लिहाजा, अपने पकवानों को देसी मसालों के स्वाद से सजाकर ही परोंसे। डॉ. स्मिता की मानें तो हमारे देसी मसाले भी हमारे तनाव को कम करने का काम करते हैं। जैसे दालचीन, लौंग वगैरह की खुशबू हमारे दिमाग को संतुलित करने का काम करती है। हल्दी में मौजूद करक्यूमिन में एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाते हैं।
आतिशबाजी से दूरी अच्छी- हर साल दिवाली के पटाखों की धुंध सांस लेने में परेशानी पैदा कर जाती है। चारों जमा स्मॉग भी हमारी आफत को बढ़ा जाता है। तो क्यों न इस बार दिवाली बिना पटाखे वाली रखी जाए। चलाना ही है तो स्पार्कलर सरीखे पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को चुनें। कंदील, स्काई लालटेन सरीखे विकल्पों को चुनकर भी दिवाली का जश्न खूबसूरती के साथ मना सकती हैं।
तोहफों में भी झलकाइए समझदारी- इस त्योहार में तोहफों का आदान-प्रदान तो बनता ही है। पर, उसके साथ आया अनचाहा कचरा यानी उसको आकर्षक बनाने के लिए लपेटी गई पैकिंग हमारी प्रकृति के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। यह मुसीबत और न बढ़ने पाए इसके लिए उपहार देने के लिए कपड़े या जूट के बैग का आप प्रयोग कर सकती हैं। उपहार भी पर्यावरण फ्रेंडली रखे जा सकते हैं।
-लेखक विजय गर्ग