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28 अक्टूबर: मैक्स मूलर की पुण्यतिथि

फ़्रीडरिक मैक्स मूलर प्रसिद्ध जर्मन संस्कृतवेत्ता, प्राच्य विद्या विशारद, लेखक तथा भाषाशास्त्री था। आज ही के दिन 28 अक्टूबर, 1900 को उनकी मृत्यु हुई थी।

मैक्स मूलर

मैक्स मूलर ब्रिटिश ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ में कर्मचारी था। जन्म से जर्मन होने के बावजूद भी मैक्स मूलर ने अपने जीवन का अधिकांश समय इंग्लैण्ड में व्यतीत किया था। उसका संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। मैक्स मूलर ने ‘भारतीय दर्शन’ पर कई रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह बौद्ध दर्शन में अधिक रुचि रखने लगा था तथा जापान में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। उनका जन्म जर्मनी के ‘देसो’ नामक नगर में 6 दिसम्बर, 1823 ई. को हुआ था। सन 1848 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में ऋग्वेद का मुद्रण आरंभ होने के कारण उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड को ही अपना निवास स्थान बनाना पड़ा। बाद में उन्हें 1850 में वहीं आधुनिक भाषाओं का टेलर प्राध्यापक नियुक्त किया गया और फिर ‘क्राइस्ट चर्च कॉलेज’ का मान्य सदस्य बनाया गया। वह ‘आल सोल्स कॉलेज’ का भी सदस्य रहा। इस बीच उनके कई लेख प्रकाशित हुए, जो बाद में ‘चिप्स फ्रॉम ए जर्मन वर्कशाप’ शीर्षक से संग्रह रूप में प्रकाशित हुए। सन 1859 में इसकी पुस्तक ‘हिस्ट्री आव एंशेंट संस्कृत लिटरेचर’ प्रकाशित हुई। उन्होंने सन 1861 तथा 1863 में ‘रॉयल इंस्टीट्यूशन’ के समक्ष भाषा विज्ञान संबंधी कई व्याख्यान दिए, जो ‘लेक्चर्स ऑन सायंस ऑव लैंग्वेजज’ के नाम से प्रकाशित हुए। यद्यपि इन व्याख्यानों के निष्कर्ष तथा तर्क पद्धति का ह्टिनी जैसे भाषाशास्त्रियों ने काफ़ी विरोध किया, तथापि मैक्स मूलर के इन व्याख्यानों का भाषा वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में अत्यधिक महत्व है। मैक्स मूलर ने भाषा विज्ञान को ‘भौतिक विज्ञान’ की कोटि में माना है, जबकि यह वस्तुत: ऐतिहासिक या सामाजिक विज्ञान की एक विधा है। मैक्स मूलर ने भाषाशास्त्री के लिये संस्कृत के अध्ययन की आवश्यकता को इतना महत्व दिया कि उनके शब्दों में संस्कृत-ज्ञान-शून्य तुलनात्मक भाषाशास्त्री उस ज्योतिषी के समान है, जो गणित नहीं जानता। उन्होंने यूरोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया। इस कार्य में प्रिचार्ड, विनिंग, बाप तथा एडोल्फ पिक्टेट की गवेषणाओं से उसे पर्याप्त सहायता मिली। मैक्स मूलर का एक अन्य प्रिय विषय धर्मविज्ञान पुराण-कथा-विज्ञान है। इस अध्ययन ने उसे तुलनात्मक धर्म की ओर भी प्रेरित किया। सन 1873 में उसने ‘इंट्रोडक्शन टू द जिनियस ऑव रेलिजन्स’ प्रकाशित की। इसी वर्ष इस विषय से संबंधित व्याख्यान देने के लिये वह वैस्ट मिनिंस्टर एबे में आमंत्रित किया गया। बाद में 1888 से 1892 तक इस विषय पर उसकी अन्य पुस्तक चार भागों में प्रकाशित हुई, जो गिफर्ड लेक्चर्स के रूप में दिए गए भाषण हैं। उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य 51 जिल्दों में ‘सैक्रेड बुक्स ऑफ़ दि ईस्ट’ का संपादन है। यह कार्य 1875 में आरंभ किया गया था, तथा तीन जिल्दों के अतिरिक्त समग्र कार्य मैक्स मूलर के जीवनकाल में ही प्रकाशित हो चुका था। मैक्स मूलर ने ‘भारतीय दर्शन’ पर भी रचनाएँ की थीं। अंतिम दिनों वह बौद्ध दर्शन में अधिक रुचि रखने लगा था तथा जापान में मिले अनेक बौद्ध दार्शनिक ग्रंथों की गवेषणा में दत्तचित्त था। उनका संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। वह बोडलियन लाइब्रेरी का क्यूरेटर तथा यूनिवर्सिटी प्रेस का डेलीगेट था।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव