आधुनिक भारतीय शिक्षा के स्वप्नद्रष्टा मौलाना अबुल कलाम आजाद
अगर कोई देश भस्टाचार मुक्त और क्रियात्मक विचारों का समूह हो तो मेरा मानना है कि समाज के तीन प्रहरी यथा माता, पिता और शिक्षक उस देश को विशेष बनाने की क्षमता रखते हैं।
उपरोक्त बातें मौलाना साहेब ने हमारे देश के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में एक सभा में कही थी। मौलाना साहब एक प्रमुख राजनीतिज्ञ, उर्दू भाषा के मूर्धन्य विद्वान, पत्रकारिता के पथ प्रदर्शक, स्वतंत्रता सेनानी और धर्मनिरपेक्षता के प्रतिबिंब थे। वे आधुनिकता के हिमायती थे और इस बात के पैरोकार थे कि बिना दकियानूसी विचारों को छोड़े राष्ट्र का समग्र विकास संभव नहीं है। उनका मानना था कि किसी भी राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा संकुचित राष्ट्रवाद, भाषायी विषमता और धार्मिक कट्टरवाद है।
मौलाना साहब का जन्म 11 नवंबर1888 को मक्का में हुआ था। वर्ष 1890 में उनका सारा परिवार कलकत्ता में बस गया। वे हमेशा अपने आप को अपने पिता का ऋणी मानते थे क्योंकि उन्होंने उनकी प्रारंभिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था प्रदान की। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के छात्र रहे और महात्मा गांधी ने मौलाना को प्लेटो, अरस्तु और पायथागोरस के समतुल्य बतलाया था।
पंडित नेहरू ने मौलाना के दिमाग की तुलना रेजर से की थी औऱ उनका मानना था कि मौलाना अपने दिमागी रेजर से दकियानूसी विचारों को साफ करने की क्षमता रखते थे।
वर्ष 2008 में भारत सरकार ने 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने का संकल्प लिया जिसका मूल उद्देश्य मौलाना के समग्र शैक्षणिक विचारों का जनमानस में सम्प्रेषण क्योंकि मौलाना का मानना था कि विद्यालय ऐसी प्रयोगशाला होती है जहां भविष्य के नागरिक पैदा होते हैं। उनका मानना था कि किसी राष्ट्र की मजबूती ज्ञानपरक उद्योग से ही प्राप्त हो सकता है। वे हमेशा शिक्षा के मूल उद्देश्य के कार्यवाहन के लिए मुखर रहते थे। रास्ट्र के प्रथम केंद्रीय शैक्षणिक बोर्ड के सम्मेलन में उन्होंने कहा कि किसी भी सिस्टम का मूल उद्देश्य विलक्षण प्रतिभाओं को पैदा करना है।
देश के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में उनकी प्रार्थमिकता राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करना था जो राष्ट्रवाद तथा सभी के लिए निशुल्क व ज्ञानवर्धक शिक्षा पर आधारित हो।
आजादी के बाद हमारा देश दोहन, दबंगता , अशिक्षा तथा विभाजन का दंश झेल रहा था। उन्होंने अशिक्षा दूर करने के लिए वयस्कों के लिए शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया। देश के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना की। तत्पश्चात, विश्यविद्यालय अनुदान आयोग का गठन जैसे अनेक कार्य किये ।
उन्होंने तीन भाषाओं की पैरोकारी की। उनके अनुसार हमारे देश वाशियो को क्षेत्र की भाषा व हिंदी में शिक्षा देना चाहिए और अंग्रेज़ी को द्वितीय भाषा के रूप में रखना चाहिए। उनकी इच्छा थी कि शिक्षा का एकीकरण हो औऱ सम्पूर्ण राष्ट्र एक शिक्षा नीति का पालन करें। उनकी इच्छा का आंशिक पालन शिक्षा अधिकार अधिनियम2009 के द्वारा किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति से उनकी सारी कल्पनाओं को साकार किया जा सकता है क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहीं न कहीं मौलाना के समग्र शिक्षा दर्शन पर ही आधारित है जो संस्कृति, राष्ट्रीयता और विज्ञान का हिमायती है। भारत सरकार ने सन1992 में राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया।
-लेखक सुबोध झा देवघर सेंट्रल स्कूल, देवघर के प्रधानाचार्य हैं।