राष्ट्रीय

14 नवंबर: बाल दिवस पर विशेष

कहानी सुनने और सुनाने की प्रवृत्ति जन्मजात है, शिशु माता के गर्भ से जब अवतरित होता है तब उसको विश्व के नैसर्गिक कार्यकलाप विचित्र होता हैl उसके भीतर कौतूहल जाग्रत होता है, नील गगन में तारों का टिमटिमाना सूर्य, चाँद का उदित एवं अस्त होना, पक्षियों को उड़ना, चहचहाना, उसे आह्लाद कारक लगता है, नैसर्गिक क्रिया-कलाप उसके अन्दर जिज्ञासा को प्रवृत्त करते हैं, परिणामस्वरूप प्रश्न-चिह्न बुनते हैं, क्यों? कैसे? फिर ? यही पर कहानी का बीज बपन होता है, क्यों और कैसे का समाधान ही कहानी की बुनियाद हैं।

‘एक था राजा’ से लेकर प्रश्न और उत्तर के क्रम में कथा की यात्रा का श्रीगणेश होता है। कथा का सूत्रपात लोरियों से होता है, क्रमशः लोककथा, लोकगीत, राजा-रानी की कथाएँ, परी कथाएँ, पशु – पक्षियों की कहानियाँ, पुराण, इतिहास गाथाएँ , कथा क्रम और श्रृंखला को आगे ले चलती है, शिशु की आयु के बढ़ने के साथ कथा का इतिवृत्त, कथा-कथन और स्वरूप में परिवर्तन होता जाता है। बाल साहित्य पर विचार करते समय हमें पॉल हजार्ड की अमर कृति ‘बुक्स चिल्ड्रेन एण्ड मैन’ में वे लिखते हैं- मैं ऐसी पुस्तकों को पसन्द करता हूँ जो इतिहास के आत्मा के प्रति वफादार होती हैं, जो बच्चों के लिए सहज और प्रत्यक्ष ज्ञान का द्वार खोल देती हैं ,जो बच्चों में महान मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति कराती हैं, जो ज्ञानवर्धक और नैतिक गुणों से भरपूर होती हैं।

हमारे देश में बाल साहित्य उपेक्षित रहा है। पश्चिमी देशों में बाल साहित्य के सृजन, प्रकाशन, रचना-प्रक्रिया, उपयोगिता, मनोवैज्ञानिकता इत्यादि विभिन्न पहलुओं पर जो चिन्तन, मनन और जो प्रयोग हुए हैं वे भारतीय भाषाओं में इतने व्यापक तथा वैविध्यपूर्ण नहीं है।

भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य के उन्नयन में सराहनीय प्रयत्न नहीं हुआ है। बच्चों के लिए विदेशों में हजारों की संख्या में पत्रिकाएँ और पुस्तकें प्रकाशित होती हैं विशेष प्रकार के शिक्षालय, स्वास्थ्य केन्द्र, क्रीड़ा-स्थल और फिल्म आदि बनाई जाती है, ज्ञानकोष और संग्रहालय निर्मित हैं, उन देशों में यह अनुभव किया है कि बच्चों की प्रगति और उनके योग-क्षेम पर ही उस जाति का भविष्य निर्भर है।

बहुत समय पूर्व, हमारे राष्ट्र-नेता पं. जवाहरलाल नेहरु ने अनेक देशों के पर्यटन के पश्चात यह अनुभव किया था कि पाश्चात्य और रूस आदि देशों में बच्चों के प्रति जो ध्यान दिया जाता है, उनके लिए विशिष्ट प्रकार के साहित्य का सृजन होता है, सुधारात्मक शिक्षा के साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जाते हैं, यही कारण है कि उनकी वर्षगाँठ नवम्बर 14 को बाल-दिवस के रूप में मनाई जाती है। स्वाधीनता के पूर्व विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर, सत्यजित राय, प्रेमचंद राजाजी, सुकुमार राय, सुब्रह्मण्य भारती, बुद्धदेव बसु आदि महान लेखकों ने बाल साहित्यू, की रचना में विशेष रुचि ली और सुन्दर पुस्तकें प्रस्तुत की। स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे देश में भी बाल साहित्य के सृजन व प्रकाशन में विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।

हमारा लक्ष्य बच्चों को उत्तम भावी नागरिक बनाना है, इसलिए उन्हें अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्व का बोध कराने वाला साहित्य देना परमावश्यक है। विश्व की महान कृतियों में पंचतन्त्र, गुलीवर की कहानियाँ, रॉबिनसन क्रुसो, ट्रेजर आइलैंड, ईसप की कथाएँ, एलिस इन द वण्डरलैंड आदि महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इन कृतियों के पात्र पशु, पक्षी और बच्चे हैं।

पंचतन्त्र के साथ हितोपदेश, कथा सरित्सागर, बेताल कथाएँ, विक्रमादित्य की कहानियाँ, जातक कथाएँ, परी कथाएँ, बीरबल, तेनालीराम, आदि विनोदी प्रकृति के हाजिर जवाब, संस्कृत के प्रसिद्ध नाटकों की कहानियाँ, उपनिषद् की कहानियाँ प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में पुनर्लिखित हुई हैं या अनुदित हुई हैं।ये कहानियाँ बच्चों में बहुत लोकप्रिय भी हैं। बंगला बाल साहित्य के उत्थान में वहाँ के विशिष्ट कवि, कलाकारों तथा मनीषियों ने स्पृहनीय योगदान दिया है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, श्रीमती लीला मजुमदार, सत्यजीत राय, शिवराम चक्रवर्ती, आशापूर्णा देवी, हिमानीश गोस्वामी, महाश्वेता देवी आदि बंगला बाल साहित्य के विशिष्ट हस्ताक्षर हैं। संख्या की दृष्टि से हिन्दी में प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य रचा गया। इस विधा को अपनाने वालों में कवियों की संख्या अधिक है जिनमें सोहनलाल द्विवेदी, द्वारका प्रसाद माहेखरी, राष्ट्रबंधु मनोहर वर्मा, कपिल के नाम विशेष उल्लेखनीय है।

बाल पत्रि‌काओं में बानर, बालसखा, शिशु, पराग, बाल भारती, नन्दन, चम्पक चन्दामामा, लोटपोट, सुमन सौरभ आदि पत्रिकाएँ काल कलित हो गई। डॉ हरिकृष्ण देवसरे के कथनानुसार पौराणिक और प्राचीन साहित्य की कथाओं का आज के सन्दर्भ में पुनर्लेखन होना चाहिए, पर साथ ही हमारे प्राचीन कथा साहित्य भण्डार से पहले अवगत हो जाएँ और अपनी कल्पना शक्ति और उसे भावना की परिपुष्टि करें तब अपने मानसिक विस्तार के अनुरुप ज्ञान-विज्ञान तथा जीवन से जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों की समस्याओं से सम्बन्धित कहानियाँ तथा साहित्य विधाओं विधाओं का ज्ञान प्राप्त करें तो अधिक उपयुक्त होगा।

लेखक रजत मुखर्जी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *