राष्ट्रीय

चित्रकला का इतिहास

भारतीय चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना है। प्रागैतिहासिक का धारा अविच्छिन्न रूप से हमारे देश में बहती रही है। प्राचीन कला-कृतियों पर धर्म का व्यापक प्रभाव पड़ा है। यद्यपि हम कला की प्रेरणा प्रकृति से प्राप्त की, तथापि अपने आध्यात्मिक भावों को ही कला-कृतियों में प्रकट किया।

मानव सभ्यता के आदिकाल में, जबकि भाषा और लिपि का आविश्कार नहीं हुआ था, मनुष्य चित्रों द्वारा ही विचारों का आदान-प्रदान करता भा। इस कला का प्रभाव सारे संसार पर था। ऐतिहासिक युग में सबसे पहले सम्राट अशोक के समय भारतीय चित्रकला की विशेष उन्नति हुई। उस समय तक्षशिला विश्वविद्यालय में चित्र – कैला के शिक्षण की व्यवस्था भी थी। रोग राजाओं के युग में चित्रकला की प्रदर्शनियां भी आयोजित की जाती थी। युनानियों ने हमारे देश में गाँधार शैली की चित्रकला का प्रवर्तन किया। भित्ति चित्रों के कार्य में हमारे देश के चित्रकार अत्यन्त कुशल थे। पन्द्रहूवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच राजपूत शैली के चित्र बने शताबी बीकला तिहास में इस शैली

का अपना महत्व प्रकृति है। की सारी वस्तुएँ अपने आप में सुन्दर है। कला, के लिए सुन्दरता सबसे बड़ी वस्तु है। जिसमें सुन्दरता नहीं, वह कला के अन्तर्गत आ ही नहीं सकती। कला की सफलता उसी में है कि वह आत्मा, हृदय और मस्तिष्क सब पर समान रूप से प्रभाव डालें।

कला के अर्न्तर्गत मनुष्य के आचार-विचार अनुसंधान, अन्वेषण और अध्यात्म-अधिभूत दि सभी आदि प्रकार की जिज्ञासाओं का समावेश हो जाता है। कला का इतिहास मनुष्य जीवन की भांति ही विराट सृष्टि का के और अतलदर्शी है। प्रत्येक पदार्थ कलामय है और ईखर सबसे बड़ा कलाकार है। इस सृष्टि में कलाहीन और असुन्दर कुछ भी नहीं है।

आधुनिक चित्र-शैली का से स्कूल से हुआ। की बिक आरंभ बंगाल इस पर यूरोपीय चित्रशैली मुखा प्रमुख विशेषता है। इस प्रकार चित्रकला का विकास हमारे देश में निरन्तर होता रहा है। कभी इसकी धारा अवरुद्ध नहीं हुई।

लेखक रजत मुखर्जी

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