अंतर्राष्ट्रीय

1 दिसंबर: विश्व एड्स दिवस

विश्व एड्स दिवस 1 दिसंबर को मनाया जाता है। एड्स एक ख़तरनाक रोग है, मूलतः असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स के जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीमारी का काफ़ी देर बाद पता चलता है और मरीज भी एचआईवी टेस्ट के प्रति सजग नहीं रहते, इसलिए अन्य बीमारी का भ्रम बना रहता है।

विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका उद्देश्य, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े मिथ्या को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था। भारत सरकार के मुताबिक, साल 2009 में भारत में एचआईवी से पीड़ित लोगों की संख्या 2.40 मिलियन जबकि 2019 में इसकी संख्या करीब 23.49 लाख थी। एक्सन-आईबी के मुताबिक, भारत में 15 से 49 साल के करीब 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं। भारत में आज भी जिन्हें एड्स है वे यह बात स्वीकारने से कतराते हैं। इसकी वजह है घर में, समाज में होने वाला भेदभाव। कहीं न कहीं आज भी एचआईवी पॉजीटिव व्यक्तियों के प्रति भेदभाव की भावना रखी जाती है। यदि उनके प्रति समानता का व्यवहार किया जाए तो स्थिति और भी सुधर सकती है। बात अगर जागरूकता की करें तो लोग जागरूक ज़रूर हुए हैं इसलिए आज इसके प्रति काउंसलिंग करवाने वालों की संख्या बढ़ी है। पर यह संख्या शहरी क्षेत्र के और मध्यम व उच्च आय वर्ग के लोगों तक ही सीमित है। निम्न वर्ग के लोगों में अभी भी जानकारी का अभाव है। इसलिए भी इस वर्ग में एचआईवी पॉजीटिव लोगों की संख्या अधिक है। जबकि बहुत सी संस्थाएँ निम्न आय वर्ग के लोगों में इस बात के प्रति जागरूकता अभियान चला रही हैं। लोग कारण को जानने के बाद भी सावधानियाँ नहीं बरतते। जिन कारणों से एड्स होता है उससे बचने के बजाए अनदेखा कर जाते हैं। इसमें अधिकांश लोग असुरक्षित यौन संबंध और संक्रमित रक्त के कारण एड्स की चपेट में आते हैं। एड्स के ख़िलाफ़ आज शहर में अनेक समाज सेवी और सरकारी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। इनका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना, एड्स के साथ जी रहे लोगों को समाज में उचित स्थान दिलाना, उनका उपचार कराना आदि है।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव