13 दिसम्बर: अभिनेत्री स्मिता पाटिल की पुण्यतिथि
स्मिता पाटिल हिन्दी फ़िल्मों की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। आज ही के दिन 13 दिसम्बर, 1986 को उनकी मृत्यु हुई थी।
स्मिता पाटिल ने अपने सशक्त अभिनय से समानांतर सिनेमा के साथ-साथ व्यावसायिक सिनेमा में भी ख़ास पहचान बनाई थी। उत्कृष्ट अभिनय से सजी उनकी फ़िल्में ‘भूमिका’, ‘मंथन’, ‘चक्र’, ‘शक्ति’, ‘निशांत’ और ‘नमक हलाल’ आज भी दर्शको के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं। भारतीय संदर्भ में स्मिता पाटिल एक सक्रिय नारीवादी होने के अतिरिक्त मुंबई के महिला केंद्र की सदस्य भी थीं। वे महिलाओं के मुद्दों पर पूरी तरह से वचनबद्ध थीं। भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें दो बार ‘राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार’ और ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया गया था। हिन्दी फ़िल्मों के अलावा स्मिता पाटिल ने मराठी, गुजराती, तेलुगू, बांग्ला, कन्नड़ और मलयालम फ़िल्मों में भी अपनी ख़ास पहचान बनाई थी। उनका जन्म 17 अक्टूबर, 1955 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका विवाह राज बब्बर के साथ सम्पन्न हुआ था। भारतीय सिनेमा जगत में ‘चरणदास चोर’ को ऐतिहासिक फ़िल्म के तौर पर उन्हें याद किया जाता है, क्योंकि इसी फ़िल्म के माध्यम से श्याम बेनेगल और स्मिता पाटिल के रूप में कलात्मक फ़िल्मों के दो दिग्गजों का आगमन हुआ। इसके बाद वर्ष 1975 में श्याम बेनेगल द्वारा ही निर्मित फ़िल्म ‘निशांत’ में उन्हें काम करने का मौका मिला। 1977 उनके सिने कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी ‘भूमिका’ और ‘मंथन’ जैसी सफल फ़िल्में प्रदर्शित हुई। दुग्ध क्रांति पर बनी फ़िल्म ‘मंथन’ में स्मिता पाटिल के अभिनय के नए रंग दर्शकों को देखने को मिले। इस फ़िल्म के निर्माण के लिए गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रतिदिन की मिलने वाली मज़दूरी में से दो-दो रुपये फ़िल्म निर्माताओं को दिए और बाद में जब यह फ़िल्म प्रदर्शित हुई तो यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। लगभग दो दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच पहचान बनाने वाली यह अभिनेत्री महज 31 वर्ष की उम्र में 13 दिसंबर, 1986 को इस दुनिया को अलविदा कह गई। उनकी मौत के बाद 1988 में उनकी फ़िल्म ‘वारिस’ प्रदर्शित हुई, जो उनके सिने कैरियर की महत्त्वपूर्ण फ़िल्मों में से एक है।