राष्ट्रीय

14 फरवरी: साहित्यकार विद्यानिवास मिश्र की पुण्यतिथि

विद्यानिवास मिश्र हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार, सफल सम्पादक, संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान और जाने-माने भाषाविद थे। आज ही के 14 फ़रवरी, 2005 को उनकी मृत्यु हुई थी।

हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार, सफल सम्पादक, संस्कृत- हिन्दी साहित्य को अपने ललित निबंधों और लोक जीवन की सुगंध से सुवासित करने वाले विद्यानिवास मिश्र ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने आधुनिक विचारों को पारंपरिक सोच में खपाया था। साहित्य समीक्षकों के अनुसार संस्कृत मर्मज्ञ मिश्र जी ने हिन्दी में सदैव आँचलिक बोलियों के शब्दों को महत्त्व दिया। विद्यानिवास मिश्र के अनुसार- “हिन्दी में यदि आँचलिक बोलियों के शब्दों को प्रोत्साहन दिया जाये तो दुरूह राजभाषा से बचा जा सकता है, जो बेहद संस्कृतनिष्ठ है।” मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से भी सम्मानित किया था। उनका जन्म 28 जनवरी, सन 1926 में पकडडीहा गाँव, गोरखपुर में हुआ था। वे अपनी बोली और संस्कृति के प्रति सदैव आग्रही रहे। लोक संस्कृति और लोक मानस उनके ललित निबंधों के अभिन्न अंग थे, उस पर भी पौराणिक कथाओं और उपदेशों की फुहार उनके ललित निबंधों को और अधिक प्रवाहमय बना देते थे। उनके प्रमुख ललित निबंध संग्रह हैं- ‘राधा माधव रंग रंगी’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’, ‘शैफाली झर रही है’, ‘छितवन की छांह’, ‘बंजारा मन’, ‘तुम चंदन हम पानी’, ‘महाभारत का काव्यार्थ’, ‘भ्रमरानंद के पत्र’, ‘वसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’ और ‘साहित्य का खुला आकाश’ आदि आदि। उनके ललित निबंधों में जीवन दर्शन, संस्कृति, परंपरा और प्रकति के अनुपम सौंदर्य का तालमेल मिलता है। इस सबके बीच वसंत ऋतु का वर्णन उनके ललित निबंधों को और अधिक रसमय बना देता है।

ललित निबंधों के माध्यम से साहित्य को अपना योगदान देने वाले विद्यानिवास हिन्दी की प्रतिष्ठा हेतु सदैव संघर्षरत रहे, मारीशस से सूरीनाम तक अनेकों हिन्दी सम्मेलनों में मिश्र जी की उपस्थिति ने हिन्दी के संघर्ष को मजबूती प्रदान की। हिन्दी की शब्द संपदा, हिन्दी और हम, हिन्दीमय जीवन और प्रौढ़ों का शब्द संसार जैसी उनकी पुस्तकों ने हिन्दी की सम्प्रेषणीयता के दायरे को विस्तृत किया। तुलसीदास और सूरदास समेत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अज्ञेय, कबीर, रसखान, रैदास, रहीम और राहुल सांकृत्यायन की रचनाओं को संपादित कर उन्होंने हिन्दी के साहित्य को विपुलता प्रदान की। वे कला एवं भारतीय संस्कृति के मर्मज्ञ थे। खजुराहो की चित्रकला का सूक्ष्मता और तार्किकता से अध्ययन कर उसकी नई अवधारणा प्रस्तुत करने वाले विद्यानिवास मिश्र ही थे। उन्होंने कुछ वर्ष ‘नवभारत टाइम्स’ समाचार पत्र के संपादक का दायित्व भी संभाला। उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ के ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’, ‘के. के. बिड़ला फाउंडेशन’ के ‘शंकर सम्मान’ से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म श्री’ और ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया था। राजग शासन काल में उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव