अंतर्राष्ट्रीय

गुरुत्वाकर्षण से ज्यादा सशक्त है सत्ताकर्षण


सत्ताकर्षण गुरुत्वाकर्षण से भी अधिक बलवान होता है। इस आकर्षण की खोज के लिए किसी न्यूटन की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके प्रभाव से सत्ता तक पहुंचने और उससे चिपके रहने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। जैसे गुरुत्वाकर्षण पूरी पृथ्वी पर समान रूप से लागू है, वैसे ही सत्ताकर्षण सिर्फ हमारे देश में नहीं, हर देश में है। इतिहास में कई घटनाओं का जिक्र होता है कि अमुक ने सत्ता के लिए अपने बाप को मार डाला तो अमुक सौ भाइयों को मारकर सत्तासीन हुआ। इसके अतिरिक्त गद्दारी और वफ़ादारी के अनेक किस्से हैं जो सत्ता से प्रेरित हैं। और अब बूथ कैप्चरिंग के बाद ईवीएम मैनेजमेंट जैसी नई तरकीब चर्चा में हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति दुबारा सत्ता मिलने पर किसी राष्ट्र को अपना प्रांत बनाने पर आमादा हैं तो किसी देश पर टैरिफ लादने के लिए बेताब हैं। किसी देश के खनिज पर कब्जा करना चाहते हैं तो किसी देश को बमबारी की धमकी दे रहे हैं। जनाब ने सत्ताकर्षण से प्रभावित होकर अपने देश के संविधान को बदलने की मंशा व्यक्त की है। वहां के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति के पद पर नहीं रह सकता। पर ट्रम्प इस चक्कर में हैं कि कोई ट्रम्प कार्ड चलाकर खुद को तीसरी बार और यदि संभव हो तो अनंत काल के लिए राष्ट्रपति बनाए रखें।
रूस में ऐसा हो ही चुका है, चीन में हो रहा है। तुर्किए इसी राह पर है ही। हमारे देश में ऐसी मनाही तो नहीं है पर अघोषित तौर पर एक पार्टी अपने पचहत्तर वर्ष से अधिक के नेताओं को मार्गदर्शक दीर्घा में बैठाना पसंद करती है। दूसरे को मार्गदर्शन दीर्घा में बैठाना जितना आसान है खुद को उस दीर्घा में बैठाना उतना ही कठिन है। ऐसे में यदि पार्टी का कोई सशक्त नेता पचहत्तर वर्ष का हो जाए तो इस नीति में संशोधन होगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है। वैसे जो प्रतिक्रियाएं अभी तक आई हैं उससे तो यही लग रहा है कि बक़ौल एनिमल फार्म, ऑल आर इक्वल बट सम आर मोर इक्वल देन अदर्स। तो जो ‘मोर इक्वल’ है उस पर यह पचहत्तर का नियम लागू नहीं होगा।
नापाक पाक में तो यह जानते हुए भी कि सत्तासीन होने के बाद जेल का निवासी बनना है या फांसी के फंदे पर झूलना है, लोग सत्ता के मोह को छोड़ नहीं पाते हैं। वैसे जेल में बंद पाक के पूर्व राष्ट्रपति को नोबेल शांति पुरस्कार का झुनझुना दिखाया तो जा रहा है। कुछ हद तक यही बात पाक की इज्जत को खाक करके बने बांग्लादेश की भी है। वहां शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत व्यक्ति अशांति फैलाकर सत्तासीन हो चुका है। स्वयं सहायता समूह का प्रणेता चीन की पर-सहायता पर इतरा रहा है।

लेखक विजय गर्ग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *