साहित्य

कविता: माँ के लिए क्या लिखूं?

मां के लिए मैं लिखूं
तो क्या लिखूं?
मां बोलना भी तो
मां ने ही सिखाया है,
मां के लिए मैं लिखूं
तो क्या लिखूं?
पापा बोलना भी तो
मां ने ही सिखाया है,
मां के लिए मैं लिखूं
तो क्या लिखूं?
सभी रिश्तों का
लिहाज़ भी तो
मां ने ही बताया है,
मां के लिए मैं लिखूं
तो क्या लिखूं?
सबों से अच्छे से बात
करने का अदब भी तो
मां ने ही सिखाया है,
मां के लिए लिखूं
तो क्या लिखूं?
अच्छों बुरों का समझ भी तो
मां ने ही बताया है,
मां के लिए मैं लिखूं
तो क्या लिखूं?
हमेशा अपना और अपनो का
ख़्याल रखना भी तो
मां ने ही सिखाया है,
मां के लिए मैं लिखूं
और क्या लिखूं?
सारी अच्छी आदतें भी तो
मां ने ही सिखाया है…..
“मां के लिए कोई दिन नहीं होता,
बल्कि मां का तो हर दिन ही होता है,
क्योंकि मां के बिना तो कोई
दिन ही नहीं होता है”…..

लेखक- प्रशांत कुमार विश्वकर्मा


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