फंगस केवल फसलों का ही दुश्मन नहीं, इंसानों की जान के लिए भी ख़तरनाक
एक साइंस जर्नल के मुताबिक, फंगस कृषि आतंकवाद का ख़तरनाक हथियार हो सकता है। फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम नामक एक फंगस विभिन्न अनाजों के विकास को प्रभावित करता है। इससे उपज भी कम हो जाती है। संक्रमित करने के बाद यह फंगस फसल के परिपक्व होने के साथ फैलता जाता है। फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम छोटे अनाज के पौधों के तने और जड़ों के ऊतकों, अवशेषों में जीवित रहने और नये पौधों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। यह माइकोटाक्सिन पैदा करता है जिसका सेवन हानिकर होता है।
बीते दिनों अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने मिशिगन यूनिवर्सिटी में शोधरत चीनी शोध वैज्ञानिक युनकिंग जियांग को गिरफ्तार किया जो अमेरिका में ख़तरनाक जैविक फंगस फ्यूजेरियम ग्रेमिनिअरम लेकर आई। वैसे फंगस विभिन्न तरह के रोग जैसे हेड ब्लाइट, रूट रौट व सीडलिंग ब्लाइट पैदा करता है। इसकी अधिकांश प्रजातियां मृदाकवक हैं। जबकि फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम फंगस गेहूं, धान, मक्का और जौ में हेड ब्लाइट रोग फैलाता है। इससे मुख्यतः वोमिटोक्सिन पदार्थ पैदा होता है जो अनाज दूषित करता है। इससे निकले विषाक्त द्रव्य से हर साल अरबों डॉलर की फसल बर्बाद होती है व उपज कम होती है।
गौरतलब है कि एफबीआई ने पिछले साल जुलाई में चीनी शोध वैज्ञानिक जियान के ब्वायफ्रैंड लियू को उसके बैग में मिले लाल पौधे के पदार्थ के बारे में गोलमोल जवाब देने के बाद डेट्रायट हवाई अड्डे से वापस चीन भेज दिया था। लियू के मुताबिक, उसकी योजना मिशिगन यूनिवर्सिटी की लैब में अनुसंधान के लिए इस सामग्री का उपयोग करने की थी। इसके बाद उसने अपनी गर्लफ्रेंड जियान के जरिये छिपाकर इस ख़तरनाक फंगस को मिशिगन यूनिवर्सिटी की लैब तक पहुंचाया। लियू पहले इस लैब में काम करता था। फिलहाल वह चीनी यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। एफबीआई निदेशक ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा है कि चीन अमेरिकी संस्थानों में घुसपैठ की साज़िश कर रहा है ताकि खाद्य सुरक्षा तंत्र के जरिये बड़ी आबादी को नुक़सान पहुंचाया जा सके। इस स्ट्रेन के अनधिकृत आयात से अधिक आक्रामक या कीटनाशक प्रतिरोधी वैरिएंट आने का खतरा बढ़ जाता है। इसके कारण नियंत्रण के उपाय कम प्रभावी होते हैं।
यह खतरनाक फंगस भारत में भी पाया जाता है। अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडिसिन की 2022 की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर भारत में गेहूं की फसल में कई बार हेड ब्लास्ट के लक्षण देखे गये। हालांकि हर बार उस पर नियंत्रण पा लिया गया। इसके यहां सक्रिय होने के पीछे जलवायु परिवर्तन अहम कारण है। गेहूं की फसल के लिए इसे बड़ा खतरा माना जाता है। आईसीएआर के 2021 में हिमाचल और तमिलनाडु में किए व्यापक रोग- सर्वेक्षण में इस फंगस के बारे में खुलासा हुआ था। इससे गेहूं के दाने में हेड ब्लाइट या स्टैंड की समस्या हुई थी। यही नहीं 2021 और 2022 के बीच रबी सीजन में कर्नाटक कृषि विवि द्वारा किए एक सर्वे में कर्नाटक में हेड ब्लाइट की समस्या देखी गयी।
असल में अमेरिका में चीनी वैज्ञानिक द्वारा फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम की तस्करी की घटना ने जहां वैश्विक कृषि सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं चेतावनी भी दी है कि इस तरह मिट्टी, बीज और फसलें भी आतंकवाद के हथियार बन सकते हैं। फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम फंगस अनाज को सड़ा भी सकता है जिससे इंसान व मवेशियों की जान के लाले पड़ सकते हैं। बेहद सूक्ष्म होने के चलते यह आसानी से पकड़ में नहीं आता और हवा, मिट्टी और बीज के जरिये अपना विस्तार करता है। इसके शुरुआत में लक्षण फसली रोग जैसे होते हैं। इंसानों में जब तक इसका पता चलता है तब तक बहुत देर हो जाती है। यह जैविक युद्ध का मौन हथियार साबित हो सकता है। वैज्ञानिक इसे ’एग्रो टैररिज्म ’ बता रहे हैं। फसलों को बर्बाद करने की खातिर जैविक एजेंट का इस्तेमाल कृषि आतंकवाद कहलाता है। जिसका मकसद अर्थव्यवस्था बर्बाद करना और समाज में भय-बिखराव का माहौल बनाना है।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 17 फीसदी से ज्यादा है और आधी से ज्यादा आबादी खेती से जुड़ी है, इसलिए भारत भी चीन के निशाने पर है। पंजाब, राजस्थान और हिमाचल राज्य चीन और पाकिस्तान से सटे हुए हैं और दोनों ही देश दुश्मन देश हैं। अब बांग्लादेश भी चीन-पाक की राह पर है। गौरतलब है कि 2016 में बांग्लादेश से ही भेजे गये जहरीले फंगस मैग्नपार्थ ओराइजा पाथोटायप ट्रिटिकम ने पश्चिम बंगाल के दो जिलों में तबाही मचाई थी। इस फंगस का जहर काफी ख़तरनाक है। यह मनुष्य के शरीर में दूषित भोजन ( रोटी, अनाज, पास्ता, बीयर) से या प्रसंस्करण के दौरान, दूषित अनाज से धूल को सांस के माध्यम से त्वचा के संपर्क से प्रवेश करता है। मुख्यतः जठरांत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इसके शिकार शिशु, बच्चे और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग होते हैं। इसके असर से इंसान को उल्टी, दस्त, बुखार, हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन संकट, त्वचा में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वहीं पशुओं का विकास बाधित हो सकता है।
भारत में कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि विश्वविद्यालयों में फफूंदरोधी गेहूं की उन्नत किस्मों पर अध्ययन जारी है,रोग प्रतिरोधक बीजों का ट्रायल किया जा रहा है लेकिन इसके साथ-साथ जैविक सुरक्षा मानकों व दिशा-निर्देशों को सख्त बनाना, अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से निरंतर सहयोग-परामर्श, मौसम पूर्वानुमान प्रणाली और फफूंद का निगरानी तंत्र विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी है तभी कुछ सीमा तक इस पर नियंत्रण संभव है।
लेखक- विजय गर्ग