दुमका (शहर परिक्रमा)

दुमका: बिहार के सुल्तानगंज गंगाघाट से लेकर झारखंड के बाबा बैद्यनाथ एवं बाबा बासुकीनाथ तक एक सौ पचास किमी की दुरी तक लहरा रहा है शिवभक्ति का महासागर

बासुकीनाथ: श्रद्धा,आस्था,विश्वास एवम भक्ति का पर्याय है सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ एवम बाबा बासुकीनाथ तक कांवरियों की कांवर यात्रा, जिसकी दुरी सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ मंदिर एक सौ पांच (105) किमी और बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर से बासुकीनाथ मंदिर तक पैंतालीस (45) किमी कुल एक सौ पचास किमी पैदल मार्ग से है। यह श्रावणी मेला विश्व का सबसे अधिक दिनों तक एवम सबसे अधिक दूरी तक चलने वाला एक धार्मिक एवम आध्यात्मिक मेला है। जिसे देश विदेश से आए करोड़ों कांवरिया बम बोलबम बोलबम के महामंत्र के नारों के बीच हंसते गाते नाचते डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी बाबा भोलेनाथ के कृपा से कांधे पर गंगा जल से भरे कांवर को लिए तय करते हैं। विश्व में कहीं भी किसी भी तीर्थस्थल में डेढ़ सौ किलोमीटर के दायरे में फैला ऐसा धार्मिक मेला लगातार एक महीने तक नहीं चलता है। यह सावन का विश्व प्रसिद्ध कांवर यात्रा में पैदल आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओ को राह में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जंगल, पहाड़, खेत, खलिहान, पगडंडीयों को कांधे पर गंगा जल से भरे कांवर को अपने कंधे पर लिए सिर्फ बाबा के नाम पर कांवरिया तय कर लेते है। कांवरियों की थकान बाबा बैद्यनाथ और बाबा बासुकीनाथ को कांवर जल चढ़ाने के बाद मुस्कान में बदल जाता है। ऐसी है शिव की शक्ति और कांवरिया भक्तों की भक्ति। सुल्तानगंज गंगा घाट से कांवरियों का जत्था उत्तरवाहिनी गंगा जी से दो जलपात्र में गंगा जल लेते हैं। उसे अपने कांवर में डाल बोलबम के नारों के बीच जब बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं तो एक जल पात्र का गंगा जल से बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं और दुसरा जल पात्र का गंगा जल से बाबा बाबा बासुकीनाथ के नागेश ज्योर्तिलिंग का जलाभिषेक करते हैं। जलाभिषेक करने के बाद की जो खुशी कांवरियों के चेहरे पर देखने को मिलती है। जो शब्दो में लिख कर महसूस नहीं किया जा सकता है। बिना बासुकीनाथ के दरबार में जलार्पण किए बिना बाबा बैद्यनाथ धाम की कांवर यात्रा अधुरी मानी जाती है।

रिपोर्ट- शोभाराम पंडा Shobharam Panda