देवघर जिले को बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए रोडमैप तैयार
चेतना विकास गत वर्ष से देवघर जिले को बाल विवाह मुक्त बनाने हेतु निरंतर प्रयासरत है। इसी कड़ी में देश से ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के तकरीबन 200 सहयोगी संगठन नई दिल्ली में इकट्ठा हुए; जिसका उद्देश्य 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए एकता, सामंजस्य और दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन करते हुए 2024-25 के लिए बाल-विवाह के खिलाफ रोडमैप तैयार करना था।
कार्यशाला के बारे में बात करते हुए चेतना विकास, देवघर की निर्देशिका रानी कुमारी ने कहा कि “हमारे लिए यह गर्व की बात है कि बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे हमारे जैसे तमाम संगठन बाल विवाह के खात्मे के लिए साझा प्रयास कर रहे हैं। इस कार्यशाला में हमने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नए और लक्ष्य केंद्रित तरीके सीखे। इस नए रोडमैप के साथ हम जमीनी स्तर पर नए विचारों पर अमल में सक्षम होंगे एवं राज्य और अपने जिले में बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में उल्लेखनीय प्रगति करेंगे। हम अपने जिले में विभिन्न हितधारकों, जिला अधिकारियों, बाल कल्याण समितियों और पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम करते रहेंगे। जमीनी स्तर पर जनजागरूकता अभियानों और कानूनी हस्तक्षेपों के माध्यम से हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि लोगों में नैतिक जवाबदेही का भाव पैदा हो साथ ही उन्हें इस बाबत जागरूक किया जा सके कि बाल विवाह को अपराध के रूप में और इस गैरकानूनी काम के नतीजे को गंभीरता से आत्मसात करें।”
पिछले वर्ष तक अभियान के 161 सहयोगी संगठन देश के 17 राज्यों के 300 जिलों में काम कर रहे थे जबकि अब यह अभियान 22 राज्यों तक पहुंच चुका है।
यद्यपि अभियान का मुख्य फोकस बाल विवाह पर है लेकिन यह बच्चों की ट्रैफिकिंग और बाल यौन शोषण जैसे बच्चों के सुरक्षा व संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर भी काम कर रहा है। इस अभियान के मूल में बाल विवाह के खात्मे के लिए प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की बेस्टसेलर किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में सुझाई गई कार्ययोजना है। कार्यशाला में तय रोडमैप पर तत्काल अमल की जरूरत को रेखांकित करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के संयोजक रवि कांत ने कहा, “बाल विवाद जैसी समाज में गहरे जड़े जमाए बैठी सामाजिक बुराई के खात्मे के लिए इस तरह के बड़े पैमाने पर साझा रणनीतिक प्रयास अहम हैं। अगर इस चुनौती से निपटना है तो एक साझा और सोची-समझी रणनीति पर अमल जरूरी है। आज बाल विवाह के लिए ग्राम प्रधानों की जवाबदेही तय करके और यह सुनिश्चित करके कि इस मुद्दे पर सभी हितधारक आपसी समन्वय और तालमेल से काम करें, सरकारें और कानून प्रवर्तन एजेंसियां अहम कदम उठा रही हैं जो बाल विवाह के खात्मे की उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं। बाल विवाह की कुरीति सदियों से जारी है लेकिन अब समय आ गया है जब इसे उखाड़ फेंका जाए।”
कार्यशाला में मिले विचारों और उस पर अमल से उत्साहित देवघर जिले में काम कर रहे चेतना विकास आश्वस्त है कि वह देवघर जिले को, राज्य को और अंतत: संपूर्ण भारत को 2030 तक बाल विवाह मुक्त बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभाएगा।