साहित्य

आलेख: पूर्वाग्रहों की जंजीरें

हमारी दुनिया में पूर्वाग्रहों का जाल इतनी बारीकी से बुना हुआ है कि हममें से अधिकतर लोग इसके प्रभाव से अनजान रहते हैं। यह जाल हमारे जीवन में सोचने, समझने और प्रतिक्रिया देने के ढंग को आकार देता है । पूर्वाग्रह का अर्थ है किसी भी व्यक्ति, वस्तु, समूह या स्थिति के प्रति पहले से बनी हुई मानसिक धारणा, जो अक्सर बिना किसी साक्ष्य के होती है, यह हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा असर डालती है । पूर्वाग्रहों का उद्भव अक्सर हमारे सांस्कृतिक, पारिवारिक, और सामाजिक अनुभवों से होता है। उदाहरण के लिए, किसी विशेष वस्तु, जाति, व्यक्ति या समुदाय के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का विकास बचपन में सुनी या देखी गई कहानियों, अनुभवों और सामाजिक मान्यताओं से हो सकता है। यह पूर्वाग्रह किसी विषय के बारे में तथ्यों के स्थान पर भावनाओं और धारणाओं पर आधारित होता है। इसके विकास में तर्क और विवेक का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता। आमतौर पर व्यक्ति पूर्वाग्रहों को अपने परिवार या निकट संबंधी रहे लोगों की राय के अनुकरण के आधार पर सीखता है । इनको वह अक्सर अपने व्यवहार का अंग इसलिए बना लेता है कि उसके निकट के लोग इस प्रकार की धारणाएं रखते हैं। जाहिर है, इस तरह की धारणाओं के निर्माण में विवेक आधारित विचार की जगह नहीं होती । इन पूर्वाग्रहों का आधार समय के साथ इतना गहरा हो जाता है कि व्यक्ति उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन स्वीकार नहीं करता ।
इस तरह पूर्वाग्रहों के प्रभाव बहुआयामी होते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर यह हमारे निर्णय लेने और सोचने-समझने की क्षमता पर अतिक्रमण कर लेता है, जिससे हम अपने ही हितों के विरुद्ध निर्णय ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के प्रति पूर्वाग्रह उन्हें महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं में पदोन्नति देने से रोक सकता है, चाहे उनके पास आवश्यक योग्यता और अनुभव हो । सामाजिक स्तर पर यह असमानता और विभाजन को बढ़ावा देता है, जो समाज की प्रगति को बाधित करता है। आधुनिक जीवन में बढ़ रहे नए- नए संचार माध्यम भी पूर्वाग्रहों के प्रसार और पोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। फिल्मों और प्रचार माध्यमों में अक्सर ऐसी छवियां और कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं जो किसी विशेष समूह, व्यक्ति और विषय के प्रति हमारे दृष्टिकोण को प्रभावित करती हैं।
आज जिसे सोशल मीडिया कहा जाता है, वैसे डिजिटल मंचों के आगमन ने इस समस्या को और अधिक जटिल बना दिया है। अब हमारे पास ऐसे तंत्र हैं, जो हमारे पूर्वाग्रहों को सुदृढ़ करने वाली सामग्री को प्राथमिकता देते हैं, जिससे हम और भी गहराई से पूर्वाग्रह में फंस जाते हैं। यह न केवल व्यक्तिगत सोच को प्रभावित करता है, बल्कि सामूहिक विचारधारा को भी विकृत करता है। वर्तमान समय में पूर्वाग्रह, पक्षपात और पूर्वधारणाएं समाज के विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं।
जब किसी व्यक्ति के खिलाफ पूर्वाग्रह या पक्षपात किया जाता है, तो उसे अपने आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में कमी महसूस होती है। इससे उसकी मानसिक स्थिति कमजोर हो सकती है। लगातार पूर्वाग्रह और पक्षपात का सामना करने से व्यक्ति में चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह उसे अपने जीवन में नकारात्मक सोच और उदासी की ओर धकेल सकती हैं। अक्सर व्यक्ति की छोटी से बड़ी मानसिक समस्याओं का कारण उसकी ही धारणाओं और पूर्वाग्रहों में छिपा होता है जिनसे वह अनजान होता है।
सही शिक्षा पूर्वाग्रहों को चुनौती देने और उनसे मुक्त होने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। जब हम विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं के बारे में विस्तार से सीखते हैं, तो हम अपने पूर्वाग्रहों को समझने और उन पर सवाल उठाने की क्षमता विकसित कर पाते हैं। ऐसी समावेशी शिक्षा प्रणाली, जो विविधता का सम्मान करती है और विभिन्न दृष्टिकोणों को महत्त्व देती है, हमें पूर्वाग्रहों के जाल से बाहर निकलने में मदद कर सकती है। इसके अलावा, चिंतन और आत्म- जागरूकता का विकास हमें हमारे अपने पूर्वाग्रहों को पहचानने और उन्हें दूर करने की दिशा में कदम बढ़ाने में सक्षम बनाता है। यह न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि एक न्यायसंगत और समतावादी समाज के निर्माण के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । पूर्वाग्रहों का मुकाबला करने के लिए सबसे पहले हमें आत्म- जागरूकता की आवश्यकता है। हमें यह पहचानने की जरूरत है कि हमारे पास भी पूर्वाग्रह हो सकते हैं और उन्हें स्वीकार करना ही उनके प्रभाव को कम करने का पहला कदम है। इसके लिए हमें अपने दृष्टिकोण और व्यवहार की नियमित समीक्षा करनी चाहिए और उनके पीछे के कारणों की जांच करनी चाहिए। हमें दूसरों के अनुभवों और दृष्टिकोणों को समझने का प्रयास करना चाहिए ।
संवाद, सहानुभूति और सम्मान का अभ्यास हमारे समाज को पूर्वाग्रहों के जाल से मुक्त कर सकता है। समाज के विभिन्न संस्थानों का भी यह दायित्व है कि वे पूर्वाग्रहों को कम करने के प्रयास करें। पूर्वाग्रहों का जाल अत्यंत व्यापक है, जो हमारी सोच, व्यवहार और सामाजिक संरचना को प्रभावित करता है । इसे तोड़ने के लिए हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और संस्थागत स्तर पर निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। इस दिशा में उठाए गए हर छोटे कदम का प्रभाव व्यापक हो सकता है, जिससे हम एक अधिक न्यायपूर्ण और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं।