13 सितम्बर: कवि श्रीधर पाठक की पुण्यतिथि
श्रीधर पाठक भारत के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। वे स्वदेश प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य तथा समाज सुधार की भावनाओं के कवि थे। आज ही के दिन 13 सितम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हुई थी।
श्रीधर पाठक ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के पाँचवें अधिवेशन के सभापति हुए थे। उन्हें ‘कविभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी पर श्रीधर पाठक का समान अधिकार था। उनका जन्म 11 जनवरी, सन 1860 में जौंधरी नामक गाँव, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित लीलाधर था। श्रीधर पाठक ‘सारस्वत’ ब्राह्मणों के उस परिवार में से थे, जो 8वीं शती में पंजाब के सिरसा से आकर आगरा ज़िले के जौंधरी नामक गाँव में बस गया था। एक सुसंस्कृत परिवार में उत्पन्न होने के कारण आरंभ से ही इनकी रूचि विद्यार्जन में थी। उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में अच्छी कविता की हैं। उनकी ब्रजभाषा सहज और निराडम्बर है, परंपरागत रूढ़ शब्दावली का प्रयोग उन्होंने प्रायः नहीं किया है। खड़ी बोली में काव्य रचना कर श्रीधर पाठक ने गद्य और पद्य की भाषाओं में एकता स्थापित करने का एतिहासिक कार्य किया। खड़ी बोली के वे प्रथम समर्थ कवि भी कहे जा सकते हैं। यद्यपि इनकी खड़ी बोली में कहीं-कहीं ब्रजभाषा के क्रियापद भी प्रयुक्त है, किन्तु यह क्रम महत्वपूर्ण नहीं है कि महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा ‘सरस्वती’ का सम्पादन संभालने से पूर्व ही उन्होंने खड़ी बोली में कविता लिखकर अपनी स्वच्छन्द वृत्ति का परिचय दिया। देश-प्रेम, समाज सुधार तथा प्रकृति-चित्रण उनकी कविता के मुख्य विषय थे। उन्होने बड़े मनोयोग से देश का गौरव गान किया है, किन्तु देश भक्ति के साथ उनमें भारतेंदु कालीन कवियों के समान राजभक्ति भी मिलती है। वे एक कुशल अनुवादक थे। कालिदास कृत ‘ऋतुसंहार’ और गोल्डस्मिथ कृत ‘हरमिट’, ‘टेजटेंड विलेज’ तथा ‘प ट्रैवलर’ का वे बहुत पहले ही ‘एकांतवासी योग’, ऊजड ग्राम और श्रांत पथिक शीर्षक से काव्यानुवाद कर चुके थे। उनकी कुछ मौलिक कृतियों की सूची इस प्रकार हैं- वनाश्टक, काश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत, गोपिका गीत, मनोविनोद, जगत सच्चाई-सार इत्यादि।