दुमका (शहर परिक्रमा)

एसकेएमयू में शुरू हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार

दुमका: सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका में बुधवार से स्नातकोत्तर हिंदी विभाग एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई। उक्त राष्ट्रीय संगोष्ठी हिंदी के प्रसार में झारखंड के साहित्यकारों का योगदान विषय पर आयोजित की गई। लगातार हो रही बारिश के कारण उद्घाटन सत्र थोड़ा विलंब से करीब 11 बजे शुरू हुआ।

सभी मुख्य अतिथि के कार्यक्रम स्थल पर पहुँचते ही स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के विद्यार्थियों ने उन सभी का स्वागत पारंपरिक लोटा-पानी से किया। उसके बाद विवि के कुलगीत एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत हुई। तत्पश्चात मुख्य अतिथियों को पौधा, स्मृति चिह्न एवं शॉल देकर स्वागत किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिमल प्रसाद सिंह ने की एवं मुख्य वक्ता के रूप में झारखंड के जाने-माने साहित्यकार महादेव टोप्पो और दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमरनाथ झा उपस्थित थे। मंच पर उपस्थित अन्य वक्ताओं में क्षेत्रीय शिक्षा के संयुक्त निदेशक डॉ.गोपाल कृष्ण झा, छात्र कल्याण के डीन डॉ.जैनेंद्र यादव, मानविकी के डीन डॉ परमानंद प्रसाद सिंह, विभागाध्यक्ष सह संगोष्ठी संयोजक के अध्यक्ष डॉ विनय कुमार सिंह शामिल थे। कार्यक्रम के संयोजक एवं स्नातकोत्तर हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. बिनय कुमार सिन्हा ने सभी का स्वागत करते हुए विषय प्रवेश कराया और कहा साहित्य के प्रसार में झारखण्ड के साहित्यकारों का महत्वपूर्ण भूमिका रहा है। संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र काफी धमाकेदार रहा और सभी वक्ताओं ने विषय से जुड़े गंभीर शोध आधारित बिंदुओं को सामने रखकर सोच को नया आयाम देने की कोशिश की। मुख्य वक्ता के रूप में महादेव टोप्पो ने कहा कि यह आयोजन साहित्य में अपनी जड़ों की ओर लौटने वाली आवाज के रूप में दर्ज होगा। झारखंड की धरती एक जागरूक धरती है, जिसने हमेशा उत्पीड़न का प्रतिरोध किया है और यह आवाज साहित्य में भी मुखर रही है। विशिष्ट वक्ता डॉ.अमरनाथ झा ने बहुत ही महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक शोध पर आधारित भाषण दिया। उन्होंने इस विषयवस्तु को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय इतिहास एवं साहित्य की मुख्य धारा से जोड़ने वाला विचार बताया तथा बताया कि संथाल परगना की धरती कभी भी उजाड़ या शांत धरती नहीं रही है। सातवीं शताब्दी से ही यह इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली धरती के रूप में जानी जाती रही है। मुख्य वक्ता महादेव टोप्पो ने साहित्यकार राधाकृष्ण से लेकर आधुनिक साहित्यकारों तक की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी की विषयवस्तु दिवंगत साहित्यकारों की जानकारी आधुनिक पीढ़ी तक पहुंचाने में सहायक है। उन्होंने मुक्त छंद के प्रणेता महेश नारायण को भी याद किया, जो झारखंड से थे तथा निराला से बहुत पहले मुक्त छंद का उद्घोष कर चुके थे। इस सत्र में विभागाध्यक्ष सह संगोष्ठी संयोजक ने सफल आयोजन का श्रेय कुलपति को दिया तथा कहा कि उन्होंने हर कदम पर उत्साहपूर्वक हमारी मदद की है। कुलपति प्रो.बिमल प्रसाद सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदी आज 130 देशों की भाषा है तथा तेजी से अंतरराष्ट्रीय भाषा बनने की ओर अग्रसर है। साथ ही हिंदी में सॉफ्टवेयर एवं कंप्यूटर संबंधी रचनात्मकता इसे वैश्विक स्तर प्रदान करने में बहुत सहायक है। मेडिकल इंजीनियरिंग एवं अन्य तकनीकी विषयों से संबंधित पुस्तकें हिंदी में तेजी से लिखी जा रही हैं। उन्होंने सहजता एवं संवेदना की गहराई को व्यक्त करने में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा की। क्षेत्रीय शिक्षा के संयुक्त निदेशक डॉ.गोपाल कृष्ण झा ने भी इस क्षेत्र की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा इस सेमिनार की विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए अन्य वक्ताओं डॉ.जितेंद्र यादव, डॉ.परमानंद प्रसाद सिंह की सराहना की। मंच का सफल संचालन डॉ.यदुवंश ने किया। यदुवंश ने अपने विषयवस्तु पर बेहतरीन जानकारी देकर कार्यक्रम में लय बनाए रखी तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अरुण वर्मा ने किया। डॉ.अनूप वर्मा ने सबसे पहले बारिश के बावजूद सेमिनार को सफल बनाने में भूमिका के लिए छात्र-छात्राओं को धन्यवाद दिया तथा सफाई कर्मचारियों एवं मजदूरों की भी प्रशंसा की। उपस्थित सभी लोगों को धन्यवाद देकर सत्र का समापन किया गया। अंत में राष्ट्रगान के साथ सत्र का समापन हुआ। कार्यक्रम का दूसरा सत्र भी काफी जीवंत रहा। समानांतर सत्र के साथ-साथ लोगों ने देर शाम तक सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं काव्य संध्या का भी आनंद उठाया।

संवाददाता: आलोक रंजन