राष्ट्रीय

15 दिसंबर: सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि

सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री थे। वे ‘सरदार पटेल’ के उपनाम से प्रसिद्ध हैं। आज ही के दिन 15 दिसंबर, 1950 उनकी मृत्यु हुई थी।

सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार पटेल भारतीय बैरिस्टर और प्रसिद्ध राजनेता थे। भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के नेताओं में से वे एक थे। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन वर्ष वे उप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क़रीब पाँच सौ से भी ज़्यादा देसी रियासतों का एकीकरण एक सबसे बड़ी समस्या थी। कुशल कूटनीति और ज़रूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सरदार पटेल ने उन अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। इसी उपलब्धि के चलते उन्हें लौह पुरुष या भारत का बिस्मार्क की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया। वर्ष 2014 से उनकी जयंती ’31अक्टूबर’ राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाई जाती है। सन 1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी से प्रभावित होने के बाद सरदार पटेल ने पाया कि उनके जीवन की दिशा बदल गई है। वे गाँधीजी के सत्याग्रह के साथ तब तक जुड़े रहे, जब तक वह अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीयों के संघर्ष में क़ारगर रहा। लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को गाँधीजी के नैतिक विश्वासों व आदर्शों के साथ नहीं जोड़ा। उनका मानना था कि उन्हें सार्वभौमिक रूप से लागू करने का गाँधी का आग्रह, भारत के तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अप्रासंगिक है। फिर भी गाँधीजी के अनुसरण और समर्थन का संकल्प करने के बाद पटेल ने अपनी शैली और वेशभूषा में परिवर्तन कर लिया। सन 1917 से 1924 तक उन्होंने अहमदनगर के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की और 1924 से 1928 तक वे इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। 1918 में उन्होंने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी वर्षा से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद बम्बई सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने गुजरात के कैरा ज़िले में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई। 1928 में पटेल ने बढ़े हुए करों के ख़िलाफ़ बारदोली के भूमिपतियों के संघर्ष का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। बारदोली सत्याग्रह के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली और उसके बाद देश भर में राष्ट्रवादी नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई। उन्हें व्यावहारिक, निर्णायक और यहाँ तक कि कठोर भी माना जाता था तथा अंग्रेज़ उन्हें एक ख़तरनाक शत्रु मानते थे।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव