अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन की विचार गोष्ठी में हुआ सकारात्मक चिंतन
मिथिला क्षेत्र में उद्योग लगाने की उपलब्ध हैं अपार संभावनाएं
बाजारवाद के इस युग में मिथिला की लोक कला से जुड़े उत्पाद बेरोजगारों का जहां रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं वहीं इस कला को देश व दुनिया में स्थान मिल सकता है। इसके लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयास जारी है। ये विचार सोमवार को अंतरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन के दूसरे दिन ‘मिथिला में उद्योग की संभावना’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए।
वक्ताओं ने कहा कि मिथिला की भूमि हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम धर्म, लोक वेद परंपरा और लोक कथाओं से मिथिला की सभ्यता और संस्कृति सदा से प्रभावित रही है। मिथिला चित्रकला की सिद्धहस्त कलाकार पद्मश्री बउआ देवी, पद्मश्री दुलारी देवी आदि ने जिस प्रकार मिथिला की इस धरोहर कला को यूरोपीय देशों तक पहुंचाया है, यह विश्व स्तर पर मिथिला के लोककला की महत्ता को दर्शाता है। मणिकांत झा के संचालन में आयोजित विचार गोष्ठी की अध्यक्षता डा महेंद्र नारायण राम ने की। वक्ता के रूप में डा प्रभात नारायण झा, प्रभाष कुमार दत्त, ई ओमप्रकाश मिश्र, गजेन्द्र झा एवं शंकर नाथ ठाकुर आदि उपस्थित हुए।
गोष्ठी में अपना विचार रखते हुए दरभंगा के सांसद डा गोपाल जी ठाकुर ने कहा कि मिथिला में उद्योग व व्यवसाय की अपार संभावनाएं उपलब्ध हैं। उद्योग के लिए जो आवश्यक जरूरतें हैं, वह भी यहां उपलब्ध है। उन्होंने उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों से मिथिला क्षेत्र में उद्योग लगाने का आह्वान किया, ताकि इस क्षेत्र का चौतरफा विकास हो सके।