राष्ट्रीय

30 दिसम्बर: भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई की पुण्यतिथि

विक्रम साराभाई को भारत के ‘अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक’ माना जाता है। उनकी मृत्यु आज ही के दिन 30 दिसम्बर, 1971 को तिरुवनंतपुरम हुई थी। साराभाई का पूरा नाम ‘डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई’ था। इन्होंने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नई ऊँचाईयों पर पहुँचाया और अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर देश की उपस्थिति दर्ज करा दी। विक्रम साराभाई ने अन्य क्षेत्रों में भी समान रूप से पुरोगामी योगदान दिया। वे अंत तक वस्त्र, औषधीय, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य क्षेत्रों में लगातार काम करते रहे थे। डॉ. साराभाई एक रचनात्मक वैज्ञानिक, एक सफल और भविष्यद्रष्टा उद्योगपति, सर्वोच्च स्तर के प्रर्वतक, एक महान् संस्थान निर्माता, एक भिन्न प्रकार के शिक्षाविद, कला के पारखी, सामाजिक परिवर्तन के उद्यमी, एक अग्रणी प्रबंधन शिक्षक तथा और बहुत कुछ थे।

डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई

उनका जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में 1919 को हुआ था। साराभाई परिवार एक महत्त्वपूर्ण और संपन्न जैन व्यापारी परिवार था। उनके पिता अंबालाल साराभाई एक संपन्न उद्योगपति थे तथा गुजरात में कई मिलों के स्वामी थे। विक्रम साराभाई, अंबालाल और सरला देवी के आठ बच्चों में से एक थे। अपनी इंटरमीडिएट विज्ञान की परीक्षा पास करने के बाद साराभाई ने अहमदाबाद में गुजरात कॉलेज से मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद वे इंग्लैंड चले गए और ‘केम्ब्रिज विश्वविद्यालय’ के सेंट जॉन कॉलेज में भर्ती हुए। उन्होंने केम्ब्रिज से 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपॉस हासिल किया। ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’ के बढ़ने के साथ साराभाई भारत लौट आये और बेंगलोर के ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’ में भर्ती हुए तथा नोबेल पुरस्कार विजेता सी. वी. रामन के मार्गदर्शन में ब्रह्मांडीय किरणों में अनुसंधान शुरू किया। विश्वयुद्ध के बाद 1945 में वे केम्ब्रिज लौटे और 1947 में उन्हें उष्णकटिबंधीय अक्षांश में कॉस्मिक किरणों की खोज शीर्षक वाले अपने शोध पर पी.एच.डी की डिग्री से सम्मानित किया गया। उन्हें ‘भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक’ माना जाता है। वे महान् संस्थान निर्माता थे और उन्होंने विविध क्षेत्रों में अनेक संस्थाओं की स्थापना की या स्थापना में मदद की थी। अहमदाबाद में ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ की स्थापना में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, केम्ब्रिज से 1947 में आज़ाद भारत में वापसी के बाद उन्होंने अपने परिवार और मित्रों द्वारा नियंत्रित धर्मार्थ न्यासों को अपने निवास के पास अहमदाबाद में अनुसंधान संस्थान को धन देने के लिए राज़ी किया। इस प्रकार 11 नवम्बर, 1947 को अहमदाबाद में विक्रम साराभाई ने ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ की स्थापना की। उस समय उनकी उम्र केवल 28 वर्ष थी। साराभाई संस्थानों के निर्माता और संवर्धक थे और पीआरएल इस दिशा में पहला क़दम था। विक्रम साराभाई ने 1966-1971 तक पीआरएल की सेवा की। वे ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर भी विक्रम साराभाई रह चुके थे। उन्होंने अहमदाबाद में स्थित अन्य उद्योगपतियों के साथ मिल कर ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट’, अहमदाबाद की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव