तसर रेशम उत्पादन से ग्रामीण रोजगार सृजन की असीम संभावना: उप विकास आयुक्त
दुमका: केंद्रीय रेशम बोर्ड-केन्द्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रांची द्वारा दुमका में शनिवार को तसर रेशम कृषि मेला-2025 का हुआ वृहद् आयोजन किया गया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उप विकास आयुक्त अभिजीत सिन्हा ने कहा कि तसर रेशम उत्पादन से ग्रामीण रोजगार सृजन की असीम संभावना है।
कार्यक्रम में एसकेएम विश्वविद्यालय दुमका के कुलपति प्रो. बिमल प्रसाद सिंह ने कहा कि तसर रेशम कृषकों की सफलता की कहानी के आयाम ले कर आयेगी।
डॉ.एन.बी.चौधरी, निदेशक ने कहा कि पत्ती से रेशम बनाने की अद्भुत कला प्रकृति ने तसर रेशम कीट को प्रदान किया है, तसर रेशमकीट को एंथेरिया माईलिट्टा कहते हैं । ये रेशमकीट जंगली जंगलों में टर्मिनलिया प्रजाति और शोरिया रोबस्टा के पेड़ों के साथ-साथ बेर, जामुन जैसे अन्य खाद्य पौधों पर रहते हैं एवं इन पेड़ों की पत्तियों को खाते हैं । तसर रेशम अपनी समृद्ध बनावट और प्राकृतिक, गहरे सुनहरे रंग के लिए मूल्यवान है, और इसके अनेक एकोरेश भारत के विभिन्न राज्यों में उत्पादित की जाती हैं।रेशम उद्योग की विभिन्न कड़ियां रोजगार का सृजन करती हैं कीटपालन का कार्य या कीट के गुणवत्तापूर्ण अंडों का निर्माण हो, या धागाकरण, कताई बुनाई व वस्त्र निर्माण का कार्य हो सभी जगह स्वरोजगार की संभावना है। भारत में तसर रेशम उद्योग का गौरवशाली इतिहास सदियों पुराना है एवं झारखण्ड राज्य तसर रेशम उत्पादन में अग्रणी है । तसर रेशम की विलक्षण गुणवत्ता इस उद्योग को अनोखा स्थान प्रदान करता है। जैसा कि हम जानते हैं, तसर रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी और आर्थिक रूप से जरूरतमंद समुदायों द्वारा किया जाता है एवं यह सदियों से आदिवासी संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है। लगभग 50 से 60 प्रतिशत तसर रेशम का उत्पादन झारखंड में होता है जिससे तसर रेशम उत्पादन में झारखंड अग्रणी राज्य है। झारखंड के खरसावां, कुचाई, आमदा, भगैया, मंडरो, दुमका क्षेत्र अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता और उपस्थिति के लिए जाने जाने वाले तसर रेशम कपड़ों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। झारखंड के गोड्डा जिले का भगैया तसर क्लस्टर कई अद्यतन डिजाइन और प्राकृतिक रंग तसर कपड़े के लिए जाना जाता है। भारत में तसर रेशम उद्दोग से जुड़े 3.5 लाख लोगों में से लगभग 2.22 लाख लोग झारखंड से हैं, तसर रेशम उद्दोग गरीब लोगों के आय सृजन के लिए रोजगार के अवसरों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डॉ.एन.बी.चौधरी, निदेशक केंद्रीय रेशम बोर्ड-केन्द्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रांची ने बताया कि तसर उद्योग को बढ़ावा देने में संस्थान का अप्रतिम योगदान रहा है, साथ ही कहा कि यह संस्थान तसर रेशम के अनुसंधान और विकास के लिए समर्पित देश की एकमात्र संस्थान के रूप में कार्य करता है। आगामी वर्ष में तसर को बढ़ावा देना और उत्पादकता बढ़ाना अनुसंधान एवं विकास का मुख्य फोकस क्षेत्र होगा. तसर रेशम को इसकी चमक और अद्वितीय गुणवत्ता के साथ-साथ बड़े पैमाने पर गरीब आदिवासियों और महिलाओं की संख्या के पारंपरिक ग्रामीण स्तर के व्यवसाय के कारण एक विशिष्ट और अद्वितीय सामग्री के रूप में लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है। निदेशक ने बताया कि केंद्रीय तसर अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान रांची की स्थापना वर्ष 1964 में की गयी थी यह केंद्रीय रेशम बोर्ड, बेंगलुरु, कपड़ा मंत्रालय, भारत सरकार का एकमात्र संस्थान है जो तसर रेशम के शोध हेतु जाना जाता है।
झारखंड और अन्य राज्यों में तसर रेशम उद्दोग को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र आधारित अनुसंधान एवं विकास पहल को लैब-टू-लैंड कार्यक्रम के तहत तेज किया जाएगा। यह उल्लेख करना जरूरी है कि हाल ही में तसर रेशम आकर्षण का केंद्र बन गया है क्योंकि झारखंड में बने तसर रेशम के कपड़े को भारत के प्रधानमंत्री ने जून 2023 की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति को उपहार में दिया था। इससे झारखंड तसर रेशम धागे/कपड़े को और अधिक वैश्विक प्रसिद्धि मिली एवं तसर रेशम को एक विशिष्ट सामग्री के रूप में बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित हुआ. डॉ. चौधरी ने बताया कि विगत कई वर्षों से केंद्रीय रेशम बोर्ड-केन्द्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रांची की इकाई पी4 चक्रधरपुर ने देश की गुणवत्तापूर्ण तसर बीज उत्पादन की मांग को पूरा करने के लिए पी3 डीएफएलएस के उत्पादन के लिए रोग मुक्त गुणवत्ता वाले तसर बीज कोकून के उत्पादन के अलावा आजीविका का विकल्प प्रदान करने के लिए सुदूर कुरजुली वन क्षेत्र में पी4 पालन शुरू किया है।
यह प्रयास काफी प्रभावी रहा है . वैज्ञानिकों एवं किसानों के बीच गहन संवाद तसर रेशम उद्योग में नवाचार और विकास को प्रोत्साहित किया है . तसर रेशम उद्दोग से जंगलों के आसपास निवास करने वाली गरीब, आदिवासियों, महिलाओं को प्रमुखतया से स्वरोजगार प्रदान किया है जिससे पलायन कम हुआ है साथ ही साथ ही जल, जंगल, जमीन एवं पर्यावरण का संरक्षण भी हुआ है। कुरुजुली चक्रधरपुर के कृषकों की सफलता की कहानी नए आयाम ले कर आयी है. पी4 चक्रधरपुर इस दिशा में काफी प्रयात्शील रहा है. तसर कृषकों तक तकनीकी जानकारी प्रदान करने में तसर संस्थान का अप्रतिम योगदान रहा है. झारखण्ड एवं देश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में विचार-मंथन के दौरान तसर रेशम उत्पादन और उत्पादकता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता व्यक्त किया क्योंकि तसर रेशम अद्वितीय प्राकृतिक रंग, चमक के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ध्यान आकर्षित कर रहा है। झारखण्ड के तसर क्षेत्र की ओर अतिरिक्त ध्यान देने हेतु तसर-संवर्धन की विभिन्न मानक गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित किया है । तसर किसानों के सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि तसर रेशम उद्योग की उन्नति में प्रशिक्षण एवं प्रसार का व्यापक योगदान है क्योंकि आदिवासी परिवार द्द्वारा यह कार्य व्यापक तौर पर किया जा रहा है अतः नवीन तकनीकियों की जानकारी सुदूर अंचलों में पहुँचाने का परिणाम है की कृषक आज अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं भारत में तसर का महत्वपूर्ण स्थान है हमारा मूल उद्देश्य तसर रेशम उत्पादन में सुधार और संवर्धन के लिए नवीनतम् तकनीकों और पद्धतियों की पहचान करना और उन्हें कृषकों द्वारा अपनाना है। आने वाले वर्षों में सिल्क समग्र के माध्यम से रेशम उद्दोग को नयी गति प्रदान की जायेगी. मिट्टी से रेशम बनने तक के विभिन्न शोध आयामों को जीवंत गति प्रदान करने में केंद्रीय रेशम रेशम बोर्ड का अप्रतिम योगदान रहा है जो कि राष्ट्रीय स्तर पर अपने को स्थापित करने में प्रभावी भूमिका अदा किया है। तूफान कुमार पोद्दार ने बताया कि तसर बहुत महत्वपूर्ण है। कार्यक्रम का सञ्चालन संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. जयप्रकाश पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. शांताकार गिरी ने किया।
संवाददाता: आलोक रंजन