राष्ट्रीय

10 मार्च: सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या और पहले किसान स्कूल की संस्थापिका थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। आज ही के दिन 10 मार्च, 1897 को उनकी मृत्यु हुई थी। सावित्रीबाई फुले को महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए, सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया। जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवयित्री भी थीं। उन्हें ‘मराठी की आदिकवयित्री’ के रूप में भी जाना जाता था। वे पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। उन्होंने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा कर उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर उन्होंने उसे डॉक्टर बनाया। वे और ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर, 1873 को कराया गया। 28 नवंबर, 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया। वे एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी।

pradip singh Deo
लेखक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह देव