राष्ट्रीय

रामनवमी विशेष: तुलसीदास जी के राम


जड़ चेतन जगजीव युत, सकल राममय में जानि।
बंदों सब के पद कमल, सदा जोरि युगमानी।।

‘रामचरितमानस’ के इस दोहे से ही स्पष्ट हो जाता है कि तुलसीदास के राम सर्वत्र विराजमान हैं। भक्तिकाल के महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी की कोई भी रचना कहीं से अवश्य ही उठा लें तो आप देखेंगे, ‘रा’ एवं ‘म’ यह दोनों अक्षर उसमें अवश्य ही मिलेंगे। तुलसी जी का सारा काव्य राम पर ही आधारित है। आचार्य शुक्ल लिखते हैं – ‘तुलसीदास के राम’ जीवन की प्रत्येक स्थिति में हमें उपलब्ध हैं। गोस्वामी जी के राम लोकरक्षक के रूप में सामने आते हैं। ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य में राम जी के जीवन का पूर्ण चित्र प्रस्तुत है। कलयुग में राम कथा संजीवनी के रूप में काम आती है। तुलसी के राम निर्गुण नहीं, सगुन हैं। जीवन के प्रत्येक पहलू में राम जी का चरित्र झलकता है, तुलसी रामजी को स्वामी और अपने को सेवक मानते थे। तुलसी के राम मनुष्य को संसार से विमुख नहीं करते अपितु सत्कर्म की प्रबल प्रेरणा देते हैं। उन्होंने संसार के सभी संबंधों को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है। तुलसी के राम पग-पग पर मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। शक्ति सौंदर्य और शील तीनों भक्ति मार्ग के सोपान हैं, तुलसीदास ने अपने राम को इन तीनों गुना की इन तीनों गुणों की अनंत राशि से विभूषित किया है।
विष्णु के अवतार होते हुए भी राम जी दशरथ के पुत्र हैं: –
“भये प्रकट कृपाला दीन दयाला, कौशल्या हितकारी।”

मर्यादा की स्थापना तथा भूमि का भार हरने के लिए श्री राम पुरुष रूप में अवतीर्ण हुए। वे बालकों की भांति खेले, कूदे और नाचे – “कबहुं ससि मांगत आरि करें।” गुरु विश्वामित्र के साथ जाकर शस्त्र विद्या की सीखी और उसी समय कई राक्षसों का संहार किया। इससे राम जी के साहस और असाधारण वीरता का पता चलता है।
तुलसी के राम धैर्य, शांति और लोक मंगल की भावना से ओत प्रोत स्वरूप लिए ‘रामचरित मानस’ के मानस बन पड़े। तुलसी जी के राम का स्वभाव जहां साधारण है वहीं विलक्षण और सर्वगुण संपन्न हैं। संतकवि तुलसीदास ने प्रभु राम के स्वरूप को इस प्रकार वर्णित किया –

“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी,”
गोस्वामी जी के राम का स्वरूप इतना विशाल है कि वह शब्दों की सीमा में न जाकर भावना जगत की दृष्टि को दर्शाता है। ऐसे अपार स्वरूप महाकवि तुलसीदास ने बहुत थोड़े और सुंदर शब्दों में गागर में सागर भर दिया है। सीता स्वयंवर में शिव जी का धनुष का टूटना राम जी के इशरत्व का परिचायक है। पुत्र रूप में पिता के आज्ञा से राजपाट छोड़ दिया था। भाई के रूप में छोटे भाइयों के साथ इतना प्रेम किया कि सभी तरह के सुख – दुखों को भूल गए। इसी प्रकार पति के रूप में एक आदर्श पति, हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं। सबसे अद्भुत आदर्श उनके राज्य काल का है जिसका वर्णन बात-बात में होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि तुलसी के राम हर कसौटी पर पूर्ण हैं। प्राणी मात्र तथा समाज को श्री राम ने हर पक्ष में ऊंचा उठाया। अपने समय के भ्रष्ट समाज को देखकर तुलसी का हृदय व्याकुल हो उठा-

“जासू राज प्रिय प्रजा दुखारी’ सा नृप अवसि नरक अधिकारी,।”
उन्होंने स्वयं ही कहा, संत के हृदय दूसरों के दुख से दुखित हो उठता है।
“संत हृदय नवनीत समान।”
इस दुखित कल में राम भक्त ही उन्हें सर्वाधिक जची।
राम ही ऐसे आराध्य देव दिखाई दिए जिनका जीवन चरित ही बिगड़े हुए रोग की औषधि जान पड़ी। तुलसी जी का काव्य लोकमंगल की भावना लिए हुए है। उसे लोक मंगल के नायक “श्री राम”। अधिक क्या कहें, प्रभु राम जी का चरित तुलसी जी के कथन के अनुसार अनंत है-

“हरि अनंत हरि कथा अनंता”

लेखक रजत मुखर्जी

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