16 जून: स्वतंत्रता सेनानी चित्तरंजन दास की पुण्यतिथि
चित्तरंजन दास महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जीवन ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन’ में युगांतकारी था। चित्तरंजन दास को प्यार से ‘देशबंधु’ कहा जाता था। ये महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री थे। आज ही के दिन, 16 जून, 1925 को उनकी मृत्यु हुई थी।
चित्तरंजन दास अलीपुर षड़यंत्र काण्ड के अभियुक्त अरविन्द घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील थे। असहयोग आंदोलन के अवसर पर इन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी थी। 1921 ई. में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के ये अध्यक्ष थे। ये स्वराज्य पार्टी के संस्थापक थे। इन्होंने 1923 में लाहौर तथा 1924 में अहमदाबाद में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अध्यक्षता भी की थी। उनका जन्म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता में हुआ था और वह तत्कालीन ढाका ज़िले में तेलीरबाग़ के एक उच्च मध्यवर्गीय वैद्य परिवार से थे। उन्होंने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए। उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति और विशाल प्रासाद राष्ट्रीय हित में समर्पण कर दिया। वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। वे सन् 1922 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए लेकिन उन्होंने भारतीय शासन विधान के अंतर्गत संवर्द्धित धारासभाओं से अलग रहना ही उचित समझा। इसीलिए उन्होंने मोतीलाल नेहरू और एन. सी. केलकर के सहयोग से ‘स्वराज्य पार्टी’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था कि धारासभाओं में प्रवेश किया जाए। बंगाल और बम्बई की धारासभाओं में तो यह इतनी शक्तिशाली हो गई कि वहाँ द्वैध शासन प्रणाली के अंतर्गत मंत्रिमंडल तक का बनना कठिन हो गया। श्री दास के नेतृत्व में स्वराज्य पार्टी ने देश में इतना अधिक प्रभाव बढ़ा लिया कि तत्कालीन भारतमंत्री लार्ड बर्केनहैड के लिए भारत में सांविधानिक सुधारों के लिए चित्तरंजन दास से कोई न कोई समझौता करना ज़रूरी हो गया लेकिन दुर्भाग्यवश अधिक परिश्रम करने और जेल जीवन की कठिनाइयों को न सह सकने के कारण श्री चित्तरंजन दास बीमार पड़ गए और 16 जून, 1925 ई. को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार से वार्ता की बात समाप्त हो गई और भारतीय स्वाधीनता की समस्या के शान्तिमय समाधान का अवसर नष्ट हो गया। चित्तरंजन दास के निधन का शोक संम्पूर्ण देश में मनाया गया। सारे देशवासी उन्हें प्यार से ‘देशबंधु’ कहते थे। उनके मरने पर विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके प्रति असीम शोक और श्रद्धा प्रकट करते हुए लिखा-
एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान।।
