देवघर (शहर परिक्रमा)

‘मानव शरीर और मैं’ जीवन का संयुक्त आचरण है: श्रीराम नरसिम्हन

देवघर (15 सितम्बर 24): सेवाधाम, देवघर, में, दिव्य पथ संस्थान, अमरकंटक, के तत्वावधान में चल रहे जीवन विद्या परिचय शिविर का तीसरा दिन सार्थकता पूर्वक सम्पन्न हुआ। अस्तित्व मूलक रूप से मानव के अध्ययन के अंतर्गत शिविर के प्रबोधक श्रीराम नरसिम्हन ने आज मानव इकाई की वास्तविकता को दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने यह बताया कि मानव का यदि अध्ययन करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि मानव ‘स्वयं’ (मैं) और ‘शरीर’ का एक संयुक्त स्वरूप है। शरीर और ‘मैं’ दोनों में ही एक निश्चित किंतु भिन्न क्रियाओं एवं आवश्यकताओं की पहचान होती है। जहाँ शरीर एक भौतिक-रासायनिक क्रियाओं का पुंज है, वहीं ‘मैं’ की भी अपनी निश्चित क्रियाएं हैं। ‘मैं’ की आवश्यकताएं भाव मूलक हैं जैसे कि स्नेह, सम्मान, विश्वास, समझ आदि और शरीर की आवश्यकताएं सुविधा मूलक हैं जैसे कि भोजन, आवास, वस्त्र आदि। दोनों के भिन्न आवश्यकताओं की निश्चित पूर्ति में ही मानव की तृप्ति है। किसी एक से दूसरे की पूर्ति कदाचित सम्भव नहीं। शिविर में दोनों ही प्रकार की आवश्यकताओं एवं उसके पूरे होने के विज्ञान को विस्तार से बताया गया। साथ ही ‘मैं’ की क्रियाओं को भी सूक्ष्मता के साथ अवलोकन कराया गया। आस्वादन, चयन, तुलन, विश्लेषण, चित्रण सहित कुल 10 जीवन (मैं की) क्रियाओं को विस्तार से समझाया गया। इस अवसर को उपस्थित शिविरार्थियों, जिनमें युवा, प्रौढ़, वृद्ध, एवं बच्चे भी शामिल थे, ने खूब रस लेकर समझने का प्रयास किया। गोड्डा के जिला शिक्षा अधीक्षक भी शिविर के दूसरे दिन में उपस्थित रहे और इस शिक्षा के मानवीकरण के प्रस्ताव को समझने का प्रयास किया।
लगातार बारिश के बावजूद अच्छी संख्या में लोग उपस्थित रहे। अभी शेष चार दिनों में सुख का पता कहां है, इसपर गहराई से चर्चा होगी।