साहित्य

आलेख: शब्दों का सफर

जीवन बहुत सुंदर है और इसकी सुंदरता का आकलन हम धरती पर मिले केवल भौतिक वस्तुओं और सुख- सुविधा से नहीं कर सकते हैं। हमारे सुख का आधार भौतिक वस्तुओं के अलावा और भी बहुत-सी चीजें हैं। पेड़, पहाड़, आकाश, धरती, नदियां, झील, तारे – ये सब सुंदर हैं। इनकी सुंदरता हमारे मन में सुंदर भाव जगाती है। इसी तरह शब्द भी सुंदर होते हैं। किसी के मीठे शब्दों के माधुर्य और उसे सुनने या पढ़ने के बाद मिलने वाले सुख से ज्यादा कुछ भी सुंदर नहीं है। उसमें बहती मीठी रस – सरिता से ज्यादा किसी वस्तु में माधुर्य रस नहीं है। ऐसी सरिता जिस भी कान तक पहुंचती है, वहां प्रेम, लगाव की चाशनी घोल देती है । मन के भीतर तक आह्लादित कर देती है। रिश्तों को प्रेम के मीठे बंधन में बांध देती है। मीठे शब्द मनुष्य के मन पर चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करते हैं और बोलने वाले के प्रति एक विशेष अनुराग उत्पन्न करते हैं।
शब्द मीठे और कड़वे, दोनों होते हैं। मीठे शब्द मनुष्य को मनुष्य का हितैषी बनाते हैं, तो कड़वे शब्द मनुष्य को मनुष्य का शत्रु भी बना देते हैं । शब्दों के इतने प्रभाव हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि जब भी किसी से हम बातचीत करें तो हमारे शब्द मर्यादित और मीठे रहें, क्योंकि हमारे शब्द हमारे संस्कार, हमारे परिवेश, हमारे रहन-सहन आदि बहुत सारी चीजों को दर्शाते हैं। हम सब किसी की भाषा देखकर आसानी से यह अंदाजा लगा लेते हैं कि यह व्यक्ति किस परिवेश से आया है। इसके ज्ञान का स्तर क्या है, इसकी संगति कैसी है और इसके संस्कार कैसे हैं । हमारे शब्द किसी व्यक्ति पर क्या प्रभाव उत्पन्न करेंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कैसे और किस प्रकार शब्दों का संयोजन करते हैं । और यह सब मनुष्य की बुद्धि और विवेक पर निर्भर करता है कि वह शब्द का संयोजन किस प्रकार करता शब्दों के प्रभाव इस बात पर भी निर्भर रहते हैं कि शब्दों का संयोजन करते समय हमारे खुद के मन में कौन-से भाव रहते हैं, कितना हमारे अंदर प्रेम, घृणा, वात्सल्य, छल, कपट या माधुर्य था । शब्द तो स्वयं में जड़ है लेकिन हम अपने भाव और शब्द संयोजन द्वारा ही उसमें चेतना भरते प्राण फूंकते हैं। इसके बाद उनकी यात्राएं आरंभ होती हैं । फिर हमारे शब्द हमसे होते हुए दूसरे, तीसरे, चौथे तक हमसे भी ज्यादा तीव्र गति से यात्रा करने की क्षमता रखते हैं। जिस-जिस व्यक्ति तक हमारे शब्द पहुंचते हैं, वह व्यक्ति हमारे शब्दों के आधार पर ही हमारे व्यक्तित्व का अपने मन एक छवि तैयार कर लेता है। यानी हमारे शब्द हमारे पूरे व्यक्तित्व के परिचायक बन जाते I
कोई भी शब्द जब एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक की यात्रा करता है, तो वह खाली हाथ नहीं जाता है । कुछ भाव और भावनाएं, संवेदना लेकर यात्रा करता है। अब वह कठोर है या मधुर है, श्रवणीय है या अश्रवणीय है, हम शब्दों के पीठ पर कौन-सी भावनाएं सवार करके भेज रहे हैं, यह सब हमारी मानसिक सुंदरता पर निर्भर करता है । प्रयास रहना चाहिए कि शब्दों के साथ सुंदर और मृदु भावनाएं ही यात्रा करें, क्योंकि कहा जाता है कि अस्त्रों के बल पर कुछ लोगों पर प्रभाव जमाया जा सकता है, लेकिन अपने मृदु शब्दों के बल पर पूरी दुनिया पर अपना प्रभाव जमाया जा सकता है ।
इसलिए जब कहीं भी हम अपने शब्द भेज रहे हों, इस बात का विशेष खयाल रखना चाहिए कि शब्द जब अपने गंतव्य तक पहुंचें तो उन शब्दों को पाने वाले को वह शब्द अपरिचित और अवांछित न लगे, बल्कि पाने वाले के मन को प्रफुल्लित करे, प्रेम और उल्लास उत्पन्न करे । जब शब्द अपने गंतव्य पर पहुंचे तो वहां पर उसको यथोचित आदर और सत्कार मिले। शब्द को गंतव्य पर आदर सत्कार मिलना दरअसल, भेजने वाले की नीयत और उसकी मनोदशा पर निर्भर करता है, क्योंकि भेजते समय जैसी मन में भावना होगी, वैसे ही शब्द संयोजना होगी। फिर उसी तरह गंतव्य पर शब्दों को नियति प्राप्त होगी। क्या यह रुचिकर लगेगा कि कहीं की यात्रा करें और गंतव्य पर निरादर और अपमान का सामना करना पड़े? ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा कि उसको अपमान और अनादर का सामना करना पड़े । शब्द भी बिल्कुल यही चाहते हैं कि वे जहां भी जाएं, उन्हें सम्मान मिले । मगर इसके लिए भेजने वाले की सुंदर, कोमल भावनाओं का रहना नितांत जरूरी है। भाषा और शब्द कई बार दवा और जहर दोनों प्रभाव भी आत्मसात करके चलते हैं, जो देह की मृत्यु के भले ही कारण न बने, लेकिन संबंधों की मृत्यु के कारण जरूर बन जाते हैं। इसीलिए शब्दों का चुनाव और संयोजन करते हुए बेहद सोच- समझकर अपनी विद्वत्ता का इस्तेमाल करना चाहिए। शब्दों के साथ-साथ एक तरह से भेजने वाला भी उन शब्दों के साथ यात्रा करता है । और चाहे मनुष्य की यात्रा हो या शब्दों की यात्रा हो, सभी यात्राएं मंगलमय होनी चाहिए।

-लेखक विजय गर्ग