राष्ट्रीय

प्रदूषण: कारण और निवारण

प्रकृति और मानव का सहसम्बन्ध तब से रहा है जब से मानव धरती पर अवतरित हुआ। अपने स्वार्थ हेतु उसने प्रकृति को अवशोषित, परिवर्तित और प्रकृषित किया। मानव प्रकृति को द यह भूल गया कि आवश्यकताओं ने उसकी आ को पूरा किया लेकिन वह लालची होता चला गया और स्वयं को ऐसे कगार पर लाकर खड़ा कर दिया जहाँ से वापस आना असम्भव-सा है। विकास की न समाप्त होने वाली चाह प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन को चरम पर ले आई, परिणामस्वरूप वायु, जल, मिट्टी और यहाँ तक कि कुल मानव प्रजाति उसके दुष्परिणाम भुगतने पर विवश है। हमारे अति शोषण का परिणाम ही प्रदूषण है। प्रदूषण का तात्पर्य मनुष्य द्वारा वातावरण की गुणवत्ता में गिरावट है। वह अपने कार्यकलापों से क्षेत्रिय स्तर पर वातावरण को जो हानि पहुंचाता है वही प्रदूषण है।

प्रदूषण को पारिभाषित करने का प्रयास अनेक वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों ने किया है। उदाहरण स्वरूप डी. एम. डिक्सन के अनुसार प्रदूषण में मानव की वे सब प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं जिन्हें वह अपनी तात्कालिक या दीर्घकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वातावरण का पूर्ण लाभ लेने का प्रयास करता है।

नेचुरल इन्वाइरान मेंटल रिसर्च काउंसिल के अनुसार मानव के कार्यकलापों द्वारा निस्तारित ऊर्जा एवं तत्त्वों का कचरा जो वातावरण में हानिकारक परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी होता है, ही प्रदूषण कहलाता है। उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट्र होता है कि प्रदूषक वह तत्त्व है जो प्रकृति के परिस्थितिकीय तन्त्र को असंतुलित कर देता है। अपनी उत्पत्ति के आधार पर प्रदूषकों को अनेक श्रेणियों में रखा जा सकता है जैसे प्राकृतिक प्रदूषक, मानकीय प्रदूषक, ठोस प्रदूषक, तरल प्रदूषक, वायु सदूषक इत्यादि। समाज में व्यक्तिवादी भावना के विकसित होने का परिणाम पूरी मानव जाति को भुगतना पड़ता है।

कृषि, उद्योग, यातायात सहरी विकास इत्यादि सभी क्षेत्रों में मानव की इसी व्यक्तिवादी स्वार्थी प्रकृति का परिणाम के प्रदूषण जल, वायु, मिट्टी के रूप में हमारे सामने आया है यह जल ही है जो पृथ्वी पर ठोस, तरल और वाष्प तीनों रूपों में अपने चक को सम्पादित करके जैव मंडल को सुक्रियता प्रदान करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “जल में जब वाध्य तत्त्व जो जीवन के लिए हानिकारक हों मिले जाएं और उसके सामान्य ऑक्सिजन स्तर को गिरा दें था जल को प्रदूषित करके बीमारी का कारण बन जाएँ ऐसे तत्त्वों से युक्त जल को हम प्रदू‌षित कहते जल में जाकर हर हैं। हानिकारक तत्व इंकार के उपचारक जल जैसे नदी, झील, भूमिगत जलः समुद्री जल आदि सभी को प्रदूषित करते हैं। यह प्रदूषित जल मानव जीव-जन्तुओं और. वनस्पति के लिए बहुत हानिकारक है। अनेक प्रकार की महामारियों और घातक बिमारीयों जैसे कॉलरा, टीन्बी, जंडिस डीसेन्टी टाइफाइड डायरिया आदि प्रदूषित जल के कारण ही फैलती हैं। मृदा वातावरण का महत्त्वपूर्ण अंग है क्योंकि यह हर प्रकार की वनस्पति और जीवन की आधा आधारशिला है। मृदा का प्रदूषण भी मानवीय देनू है। रासायनिक खादों का अत्यधिक प्रयोग कर किसान अधिक से अधिक उपज चाहता है। उनको यह मालूम नहीं होता कि बीज नाशक पहले अनचाहे पौधों को समाप्त करते हैं और उसके बाद वे मृदा में मिलकर उसकी गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाते हैं।

वायु प्रदूषण तीसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्न है जो है। मानवता के सामने. एक चुनौती हमारा वायुमंडल अनेक गैसों का संमिश्रण मात्र है जिसमें कुछ वाष्प और धूल कण भी सम्मिलित हैं। वायु प्रदूषण के मुख्य कारक यातायात के साद साधन वाहन इत्यादि) तापीय ऊर्जी जनन प्लांट, उद्योग, कृषि खनन और कुछ प्राकृतिक कारक महत्वपूर्ण है। भारत में लगभग हर शहर की वायु प्रदूषित है जिसका कारण बड़ी संख्या में वाहनों का होना एवं बिना सोचे समझे किया गया औद्योगीकरण ही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी फसलों के बच्चे भाग या जानवरों के गोबर इत्यादि जलाकर भोजन पकाया जाता है जिससे प्रदूषण फैलता है।

वायु प्रदूषण की वजह से शहरी जीवन, असहनीय सा हो गया है। अनेक प्रकार की बीमारियाँ इसी प्रदूषण के प्रभाव के कारण है। ध्वनि प्रदूषण भी वह शोर है जो मानव को बहरा बना देता है और स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। ध्वनि प्रदूषण को वाहनों और मशीनों में ध्वनि नियंत्रक यंत्र लगाकर कम किया जा सकता है।

  • अन्ततः कहा जा सकता है कि हमारे विकास का एक सह-उत्पाद प्रदूषण भी है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। सड़के कम वाहन ज्यादा हैं। इसका अनुपात बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है। हमारे देश में तो सब बढ़ा ही है, अगर कुछ घटा है तो वह हैं वफादारी, सहयोग और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना ।
लेखक रजत मुखर्जी

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