17 अप्रैल: भूतपूर्व मुख्यमंत्री पं. विनोदानंद झा की 125 वीं जयंती पर विशेष
पं.विनोदानंद झा का जन्म देवघर के प्रधान तीर्थ पुरोहित परिवार में 17 अप्रैल 1900 में हुआ था। देवघर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद विनोदा बाबू उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोलकाता चले गए। वहां उन्होंने विक्टोरिया उच्च विद्यालय में प्रवेश पाया। वे विद्यालय की परीक्षा में उत्तीर्णता हासिल करने के बाद कोलकाता सेंट्रल कॉलेज में पढ़ाई करते रहे। 1920 ईस्वी में उन्होंने छात्र जीवन का त्याग कर दिया,क्योंकि 1917 ई.से ही उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होना प्रारंभ कर दिया था। इस दौरान अहमदाबाद में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद उनका संबंध कॉलेज की शिक्षा से पूर्णतः समाप्त हो गया । वे देश को स्वतंत्रता दिलाने हेतु भिन्न-भिन्न आंदोलन में भाग लेने लगे। यही कारण है कि 1922, 1930, 1932, 1940 तथा 1942 ई में वे जेल भी गए। जेल में वे स्व अध्याय में लगे रहते थे। इससे धीरे-धीरे उनके अंदर महान विचारक की प्रतिभा उत्पन्न होने लगी। राजनीति तथा अन्य विषयों पर लोग उनकी बात बड़े धैर्य पूर्वक सुनते थे।
पंडित विनोदानंद झा के सार्वजनिक जीवन का आरंभ देवघर नगर पालिका से हुआ था। इसके बाद वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में कार्य करते रहे। कृषकों के लिए जो कमेटी गठित हुई थी, जिसकी अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे, उनमें विनोदा बाबू की भूमिका मुख्य मानी जाती थी। मो.अब्दुल बारी के साथ मिलकर उन्होंने श्रमिकों की समस्याओं के समाधान का मार्ग भी निकाला था। श्रमिकों के संबंध में इनका काम प्रशंसनीय था। जिसके
फलस्वरूप इन्हें श्रम मंत्री का पद दिया गया था। संथाल परगना के संबंध में उनकी गहन जानकारियां थी। जब वह बिहार विधानसभा में सदस्य बने तब उन्होंने संतालपरगना योजना कमेटी का गठन किया था। इसके अध्यक्ष मिस्टर रसेल थे। पंडित जी और श्री कृष्ण वल्लभ सहाय भी इसके सदस्य थे। इस कमेटी के रिपोर्ट पर ही संथाल परगना में शासन व्यवस्था को व्यवस्थित किया गया था। इस दौरान जिले में जिला बोर्ड की स्थापना हुई थी। इसके अनुसार उच्च न्यायालय के अधीन न्यायाधीश की नियुक्ति हुई। पंडित विनोदानंद झा 1936 ई से 1939 ई तक संसदीय सचिव के पद पर काबिज रहे। 1942 ई की क्रांति में संपूर्ण संथाल परगना में क्रांति के स्वरूप को उन्होंने घर-घर तक पहुंचाया। वर्ष 1946 ई से 1951 ई तक वे स्वायत शासन विभाग तथा चिकित्सा विभाग के मंत्री बने रहे। डॉक्टर श्रीकृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद वर्ष 1961 ईस्वी में बिहार प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए। 18 माह तक ये इस पद पर विराजमान रहे। पंडित जी 1940 ईस्वी में पेरिस में समायोजित विश्व श्रम संघ अधिवेशन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए। इसके बाद1960 ईस्वी में महासभा के जेनेवा अधिवेशन में शामिल हुए। दोनों ही अवसर पर इन्होंने सरकारी दल का नेतृत्व किया। पंडित झा अपने व्यस्त जीवन में भी सर्वदा स्वाध्याय में लगे रहते थे। वे हिंदी तथा बांग्ला भाषा में धारा प्रवाह भाषण देते थे। महात्मा गांधी के समान ही ये सरल अंग्रेजी लिखते थे और बोलते भी थे। विभिन्न समाचार पत्रों में उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे। उनके समकालीन सभी नेता उनके विचारों का आदर किया करते थे। उनके जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव उनके पितामह पंडित गिरिजानंद ओझा का रहा। यह सहज प्रयास से देवघर के विश्व प्रसिद्ध बैद्यनाथ मंदिर के पुरोहित के पद पर प्रतिष्ठित हो सकते थे। किंतु देश सेवा के कार्य के प्रति उनकी असीम श्रद्धा थी,और यह इस पुण्य कार्य में ही लगे रहे। यह अपने समय का सदुपयोग विद्वानों और समाज सेवकों की संगति में तत्पर रहकर किया करते थे। देवघर में उनके समय में द्विजेंद्र नाथ ठाकुर ,हीरामन मिश्रा तथा शिशिर कांति प्रभृति जैसे मनीषी निवास कर किया करते थे। पंडित झा इन लोगों से देवघर के उत्थान और राष्ट्रीय समस्याओं पर हमेशा विचार विमर्श किया करते थे। बहुत कम लोग जानते हैं की ये सस्वर स्तुति पाठ तथा संत पदों का गायन भी किया करते थे। यह न केवल देवघर या बिहार राज्य के अपितु भारत के महान रत्न थे। ऐसे दुर्लभ व्यक्तित्व के गुण से संपन्न महापुरुष कभी-कभी ही धरा धाम पर अवतरित होते हैं। 9 अगस्त 1971ई. को उनके पार्थिव शरीर को परलोक का बोध प्राप्त हुआ। आज भी सभी उनके लौह पुरुष के गुण की प्रशंसा करते हैं। उनकी मृत्यु के बाद जिनके द्वारा लोकसभा के तत्कालीन प्रतिपक्ष के नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी कहा था कि विनोदा बाबू को मैने अनेक स्थान पर देखा।उनका व्यवहार मधुर व्यक्तित्व तथा सभी को साथ लेकर चलने का रहता था। एक भारतीयता का मानव मंगल कायम कर देते थे। वस्तुतः पंडित जी के सार्वजनिक जीवन आज के परिवेश में प्रेरणा के स्रोत हैं। युवा पीढ़ी को उनके जीवन और चिंतन के पथ पर चलने की जरूरत है, इससे युवाओं को सतत ऊर्जा प्राप्त होगी।
